त्रिलोचन भट्ट
दरकते जोशीमठ को बचाने की मांग को सरकार तक पहुंचाने के लिए जोशीमठ के नौ युवक 14 दिन में 300 किमी पैदल चलकर देहरादून पहुंचे तो उनका जगह-जगह जोरदार स्वागत किया गया। इन युवाओं को जुलूस के साथ रिस्पना पुल से शहीद स्मारक ले जाया गया। इन युवाओं का स्वागत करने के साथ ही इस मौके पर एक परिचर्चा का भी आयोजन किया गया। परिचर्चा में प्रसिद्ध पर्यावरणविद् प्रो. रवि चोपड़ा, जोशीमठ बचाओ संघर्ष समिति के संयोजक अतुल सती, एक्टिविस्ट इंद्रेश मैखुरी और उत्तराखंड महिला मंच की निर्मला बिष्ट ने हिस्सा लिया। इससे पहले जोशीमठ से पैदल देहरादून पहुंचे युवाओं की ओर से सचिन ने यात्रा के दौरान अपने अनुभव शहीद स्मारक पर मौजूद लोगों के साथ साझा किये।
जोशीमठ को लेकर सरकार की ओर से लोगों के पुनर्वास के लिए किसी भी तरह को कोई गंभीर प्रयास न किये जाने और जोशीमठ में दिसम्बर से लगातार किये जा रहे धरने के बावजूद सरकारी स्तर पर कोई आश्वासन न मिलने के बाद जोशीमठ के नौ युवकों का एक दल पहली मार्च को जोशीमठ से देहरादून के लिए रवाना हुआ है। करीब 300 किमी पैदल चलकर ये युवक पूरे रास्ते में लोगों को मिलकर जोशीमठ की मौजूदा हालात के बारे में बातचीत करते और इस मामले में आम लोगों का समर्थन जुटाते हुए 14 मार्च को देहरादून पहुंचे।
यात्रा में शामिल युवा
सचिन रावत, रविग्राम
आयुष डिमरी, रविग्राम
मयंक भुजवाण, रविग्राम
ऋतिक राणा, सिंहधार
अमन नौटियाल सिंहधार
ऋतिक हिन्दवाण, सिंहधार
अभय राणा, सिंहधार
कुणाल सिंह, मनोहरबाग
तुषार धीमान, अपर बाजार
देहरादून पहुंचने पर सबसे पहले जोगीवाला चौक पर युवाओं के इस दल का स्वागत किया गया। पैदल चलते हुए युवकों का दल रिस्पना पुल पर पहुंचा तो वहां मौजूद सैकड़ों लोगों ने जनगीतों के साथ उनका स्वागत किया। इसके बाद युवकों को जुलूस के साथ कचहरी स्थित शहीद स्मारक ले जाया गया। शहीद स्थल पर भी पहले से सैकड़ों लोग मौजूद थे। इनमें इंसानियत मंच और उत्तराखंड महिला मंच के अलावा दर्जनों अन्य संगठनों के लोग, एक्टिविस्ट और देहरादून में रह रहे जोशीमठ क्षे़ के लोग मौजूद थे। शहीद स्मारक पर एक परिचर्चा का आयोजन किया गया।
जोशीमठ बचाओ संघर्ष समिति के संयोजक अतुल सती ने जोशीमठ में किये जा रहे आंदोलन के बारे में बताया। उन्होंने कहा कि पिछले करीब तीन महीने से तमाम बाधाओं के बावजूद जोशीमठ तहसील परिसर में आंदोलन चल रहा है। उन्होंने कहा कि जोशीमठ में दरारें पड़नी नवंबर 2021 से ही शुरू हो गई थी। प्रभावित लोग तब से लगातार संबंधित अधिकारियों और जन प्रतिनिधियों को इस समस्या से अवगत करवा रहे थे। भविष्य में जोशीमठ में बड़ा धंसाव होने की भी आशंका लोग 2021 से ही जताने लगे थे। लेकिन किसी भी स्तर पर कोई कार्रवाई नहीं हुई। दिसंबर 2022 तक पूरे जोशीमठ में दरारें नजर आने लगी और सैकड़ों घर धंसने शुरू हुए तो 24 दिसंबर का जोशीमठ में एक बड़ा प्रदर्शन किया गया। हजारों लोग इस प्रदर्शन में शामिल हुए। जोशीमठ के लोगों को उम्मीद थी कि इसके बाद सरकार चेतेगी और राहत और बचाव के लिए कुछ कदम उठायेगी, लेकिन सरकार और प्रशासन फिर भी चुप्पी साधे रहा। जनवरी की शुरूआत में अचानक दरारें बढ़ने लगी और जमीन धंसने लगी और देश-विदेश का मीडिया जोशीमठ पहुंचा तो शासन प्रशासन सक्रिय हुआ। कुछ घोषणाएं की गई। पुनर्वास, राहत पैकेज और प्री फैब्रिकेटेड भवनों की बात हुई, लेकिन आज तक भी कुछ नहीं हुआ है। पिछले तीन महीनों में एक भी प्री फैब्रिकेटेड भवन तैयार नहीं हुआ है। न ही प्रभावित लोगों के लिए अब तक कोई स्थाई व्यवस्था की जा सकी है।
पर्यावरणविद् प्रो. रवि चोपड़ा ने कहा कि सरकार ने एक तरह से घोषणा कर दी है कि जोशीमठ में अब कोई समस्या नहीं है। सरकार अब जोशीमठ पर बात तक नहीं कर रही है, जबकि सच्चाई यह है कि जोशीमठ की समस्या अब भी ज्यों की त्यों बनी हुई है। जमीन लगातार धंस रही है और मकानों में लगातार दरारें आ रही हैं। सरकार ने जनवरी में घोषणा की थी कि दो हफ्ते में सभी प्रभावित परिवारों का पुनर्वास कर दिया जाएगा, लेकिन अब दो महीने होने को आये, पुनर्वास तो दूर सही से फौरी राहत भी लोगों को नहीं मिल पाई है। उन्होंने कहा कि जोशीमठ की इस अनदेखी के लिए राज्य सरकार ही नहीं केन्द्र सरकार भी दोषी है। केन्द्र सरकार के अधीन राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण काम करता है। इस प्राधिकरण का काम है कि देशभर में कहीं भी आपदा की कोई संभावना हो तो उसकी जांच करे और सरकार को बचाव के लिए सुझाव दे। प्रो. चोपड़ा ने कहा कि जोशीमठ का धंसाव देश-विदेश की मीडिया की सुर्खियां बन चुका है, लेकिन राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण की अब तक इस पर कोई रिपोर्ट नहीं है। राज्य आपदा न्यूनीकरण और प्रबंधन प्राधिकरण भी इस मामले में सिर्फ लीपापोती करता हुआ ही महसूस हुआ है।
जोशीमठ में भूधंसाव के बीच अगले महीने बदरीनाथ यात्रा शुरू होने के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने कहा कि हाल के दिनों में बदरीनाथ मार्ग कई बार धंसा है। दरार वाली जगहों को मिट्टी, पत्थर, मलबे से पाट दिया जाता है, लेकिन फिर से दरारें आ जाती हैं, कुछ जगहों पर गहरे गड्ढे हो जाते हैं। उन्होंने कहा कि ऐसी स्थिति में सरकार तीर्थयात्रियों और पर्यटकों को कैसे विश्वास दिलाएगी कि उनकी यात्रा पूरी तरह से निर्विघ्न संपन्न होगी। प्रो. चोपड़ा ने कहा कि बरसात का मौसम अब बहुत ज्यादा दूर नहीं है। तीन महीनों से जिस तरह से सरकार हाथ पर हाथ धरे बैठी है, उससे नहीं लगता कि बरसात आने से पहले तक प्रभावित लोगों के लिए सरकार की ओर से कोई व्यवस्था हो पाएगी। ऐसी स्थिति में बरसात के दिनों में जोशीमठ बेहद असुरक्षित हो जाएगा और कोई बड़ा घटना भी हो सकती है।
उत्तराखंड महिला मंच के निर्मला बिष्ट कहा कि जब तक जोशीमठ में मीडिया का जमावड़ा रहा, तब तक नेता और अधिकारी भी जोशीमठ में डेरा डाले रहे, तरह-तरह की घोषणाएं करते रहे, लेकिन जोशीमठ से मीडिया के लौटते ही अधिकारी और नेता भी अपनी-अपनी मांदों में लौट गये हैं। उन्होंने कहा कि इन दिनों गैरसैंण में विधानसभा सत्र चल रहा है। सभी संगठनों और विपक्षी दलों को चाहिए कि वे इस बजट सत्र में जोशीमठ के मुद्दे पर चर्चा करने के लिए सरकार पर दबाव डालें और देश की संसद में भी इस गंभीर मसले पर चर्चा हो, ताकि जोशीमठ के लोगों के लिए कोई ठोस रणनीति पर काम हो सके और पहाड़ों पर चल रही विध्वंसकारी परियोजनाओं को बंद करने की दिशा में कोई ठोस कार्य किया जा सके। जोशीमठ से पैदल यात्रा कर देहरादून पहुंचे युवाओं की ओर से सचिन ने अपनी 14 दिन की यात्रा के बारे में अनुभव साझा किये। उन्होंने कहा कि इस यात्रा में कई जगहों में लोगों ने समूह में उनके साथ मुलाकात की, जबकि बाकी रास्ते में वे हर मिलने वाले व्यक्ति से संपर्क कर जोशीमठ के हालात पर चर्चा करते रहे। उन्होंने कहा कि रास्ते में जिन भी लोगों से उन्होंने बात की सभी इस बात पर एकमत थे कि बड़ी जल विद्युत परियोजनाएं पहाड़ के लिए खतरनाक हैं, इन पर अंकुश लगाया जाना चाहिए।
जोशीमठ आंदोलन से जुड़े एक्टिविस्ट और सीपीआई एमएल के राज्य सचिव इंद्रेश मैखुरी ने कहा कि जोशीमठ को बचाने का एक ही रास्ता है कि तपोवन-विष्णुगाड परियोजना बना रही कंपनी एनटीपीसी को जोशीमठ से बाहर का रास्ता दिखा दिया जाए। उन्होंने कहा कि सत्ता समर्थकों द्वारा बार-बार कहा जाता है कि विकास के लिए कुछ विनाश तो झेलना ही पड़ता है। लेकिन, उन्होंने सवाल उठाया कि किसी परियोजना के कारण क्या विकास उन लोगों का होता है, जिन्हें विनाश झेलना पड़ता है। उन्होंने कहा कि विनाश जिन लोगों का होता है, उनकी विकास में कोई हिस्सेदारी नहीं होती। इंद्रेश मैखुरी ने कहा कि जोशीमठ के लोग और आज से 20 वर्ष पहले भी इस परियोजना के खिलाफ आवाज उठा चुके हैं और आज भी उठा रहे हैं।