रुद्रपुर में गायों का निवाला छीन रही बीजेपी सरकार

त्रिलोचन भट्ट

बीजेपी, आरएसएस और उनके अनुषांगिक संगठन खुद को बहुत बड़ा गौभक्त होने का दावा करते हैं। आये दिन गौ हत्या जैसा कोई न कोई विवाद भी वे सामने लाते रहते हैं। इनमें से ज्यादातर झूठे होते हैं। देहरादून और हिमाचल की सीमा पर हाल में ही इस तरह का झूठ फैलाने की कोशिश की गई। क्या आपको पता है कि बीजेपी की सरकार इसी उत्तराखंड में करीब 300 गौवंश के मुंह का निवाला छीनने के प्रयास में जुटी हुई है। ग्रामीण विरोध कर रहे हैं तो उन पर लाठियां चलाई जा रही हैं। ये लोग अपने गांव में कई दिनों तक धरना देने के बाद देहरादून आकर भी सरकार बहादुर के सामने गुहार लगा चुके हैं। लेकिन किसी भी स्तर पर उनकी सुनवाई नहीं हो रही है। इस वीडियो में पूरे घटनाक्रम पर बात करेंगे और जानेंगे कि किस तरह से ग्रामीणों को गफलत में रखकर उनके गौवंश को भूखा मरने के लिए विवश करने का षडयंत्र रचा गया है।

बीजेपी की डबल इंजन सरकार तरह-तरह की धोखाधड़ी करके करीब 300 गौवंश के मुंह से निवाला छीनने की पूरी तैयारी कर चुकी है। गांव के लोग इसका विरोध कर रहे हैं, लेकिन सरकार मानने को तैयार नहीं है। गौवंश के नाम पर तरह-तरह के प्रपंच रचने वाली बीजेपी और उसकी सरकार यह घोर अन्याय करने जा रही है रुद्रप्रयाग जिले के एक गांव रुद्रपुर में। केदारनाथ मार्ग से लगा यह एक छोटा सा गांव है। गांव में करीब 200 परिवार रहते हैं। ज्यादातर परिवार केदारनाथ के तीर्थ पुरोहित हैं। सरकारी आंकड़ों के अनुसार गांव के लोगों के पास 263 ऐसे पशु हैं, जो जंगल में या चारागाह में चरने जाते हैं। यहां ध्यान देने वाली बात यह है कि इस क्षेत्र में केवल गौवंश या भेड़ बकरियों को ही जंगल में चराने के लिए ले जाया जाता है। इस गांव में लोग भेड़-बकरी नहीं पालते, इस तरह से ये सभी 263 पशु गौवंश हैं। इनके लिए गांव के पास एक छोटा से चारागाह है।

इस चारागाह में से भी कुछ भूमि कुछ साल पहले भूमिहीनों को दी गई, एक हिस्से में सड़क काट दी गई। अब केवल 2 प्वॉइंट 6 हेक्टेयर जमीन ही गौचर के लिए बाकी रह गई है, लेकिन इस जमीन को भी एक साजिश और धोखाधड़ी करके पिटकुल को लीज पर दे दिया गया है। 18 मार्च को जब इस जमीन पर निर्माण की तैयारी शुरू हुई तब जाकर गांव वालों को पता चला कि उनकी गौचर की जमीन पिटकुल को दी जा चुकी है। हालांकि 2013 में भी पिटकुल ने इस जमीन पर तारबाड़ करने की कोशिश की थी, लेकिन तब केदारनाथ आपदा में इस गांव के 11 लोगों की मौत के बाद बात आई गई हो गई थी। बीते 18 मार्च को गांव वालों ने विरोध किया तो उन पर लाठियां भांजी गई, महिलाओं के साथ बदसलूकी की गई और फिर 5 नामजद सहित 50-60 लोगों के खिलाफ मुकदमा दर्ज करवा दिया गया। बावजूद इसके कि यह पूरा गांव बीजेपी का कट्टर समर्थक माना जाता है।

इस जमीन को बिजली सब स्टेशन बनाने के लिए पिटकुल को 30 साल की लीज पर देने के लिए किस तरह से धोखाधड़ी हुई, इस पर हम सिलसिलेवार बात करें, इससे पहले देहरादून में हुई ग्रामीणों की प्रेस कॉन्फ्रेंस में चलते हैं, जहां पूर्व विधायक मनोज रावत भी गांव वालों के साथ थे। प्रेस कॉन्फ्रेंस में पूर्व विधायक मनोज रावत और ग्रामीणों ने कहा कि सब स्टेशन बनाने के लिए कागजों में जिस गांव का जिक्र था, वह ब्रह्मवारी था। ब्रेकेट में रुद्रपुर लिखा गया था। यहां आसपास ब्रह्मवारी नाम की कोई जगह न होने के कारण वे निश्चिंत थे, लेकिन जब पिटकुल के लोग पूरे लाव-लश्कर के साथ बिजली सब स्टेशन का निर्माण करने के लिए पहुंचे तक जाकर उन्हें पता चला कि उनका गौचर तो पिटकुल को दे दिया गया है। उन्होंने विरोध किया। लाठियां चलाई और महिलाओं के साथ बदलसूकी की गई। और फिर मुकदमा भी दर्ज कर दिया गया। ग्रामीणों ने भी पुलिस में शिकायत की है, लेकिन उनकी तरफ से मुकदमा दर्ज नहीं किया गया है। लोगों को कहना था कि यदि पुलिस मुकदमा दर्ज नहीं करती तो वे कोर्ट का दरवाजा खटखटाएंगे।

इस पूरे मामले को परत दर परत समझने से पहले आपसे एक गुजारिश है। आप महसूस करते हैं कि इस वीडियो को बनाने में थोड़ी बहुत मेहनत की गई है और आपको इससे कुछ काम की जानकारी मिली है तो लाइक कमेंट के साथ शेयर भी करें। पहली बार मेरे चैनल पर आये हैं तो सब्सक्राइब जरूर करें। हमारे पास इनकम का कोई जरिया नहीं है, इसलिए यदि आप समर्थ हैं और चाहते हैं कि यह चैनल आगे भी चलता रहे तो अपने जेब खर्च में से एक छोटी सी राशि निकालकर आर्थिक सहयोग अवश्य करें। आप यूट्यूब पर वीडियो के नीचे ज्वॉइन बटन पर जाकर या सुपर थैंक्स पर जाकर सहयोग कर सकते हैं। डिस्क्रिप्शन में बैंक डिटेल भी है।

रुद्रपुर गांव को कुल क्षेत्रफल 58 प्वॉइंट 43 हेक्टेअर है। गांव के पास पहले गौचर के रूप में 7 प्वॉइट जीरो 5 हेक्टेअर जमीन थी। 1974 में इसमें से जीरो प्वॉइंट 70 हेक्टेअर जमीन अनुसूचित जाति के भूमिहीन परिवारों की दी गई। 1.74 हेक्टेयर पर सड़क और प्रतीक्षालय बनाया गया। एक हेक्टेअर ढलान वाली जमीन पर पौधारोपण किया गया। अन्य सभी काम निपटाने के बाद गौचर के लिए बची सिर्फ 2 प्वॉइंट 6 हेक्टेअर जमीन। जमीन के इस टुकड़े को पिटकुल को देने के लिए 2008 से ही प्रयास शुरू कर दिये गये थे। 2010 ने वन विभाग ने यह जमीन 30 साल के लिए पिटकुल को लीज पर दे दी। लेकिन इसमें कितनी तरह की गड़बड़ियां की गई, सिलसिलेवार जानते हैं।

पहली बात कागजों में सब स्टेशन का नाम था ब्रह्मवारी और ब्रेकेट में रुद्रपुर। ब्रह्मवारी नाम की कोई जगह आसपास नहीं है। रुद्रपुर से करीब 30 से 35 किलोमीटर दूर बरम्वाड़ी गांव जरूर है। लेकिन यह गांव ब्लॉक अगस्तमुनि, तहसील बसुकेदार के अंतर्गत आता है। जबकि रुद्रपुर गांव ब्लॉक व तहसील ऊखीमठ में आता है। लगता है, ऐसा गांव वालों को गफलत में रखने के इरादे से किया गया और हुआ भी यही।

दूसरी बात सब स्टेशन बनाने के लिए ग्राम सभा का जो अनापत्ति प्रमाण पत्र बनाया गया, वह भी अव्वल किस्म का धोखा है। यह प्रमाण पत्र ऐसे समय पर बनाया गया, जब ग्राम सभाएं भंग थी और प्रशासकों को जिम्मेदारी दी गई थी। अनापत्ति प्रमाण पत्र देने के लिए जो कथित बैठक हुई, उसमें तीन लोग थे। ग्राम पंचायत विकास अधिकारी, खंड विकास अधिकारी और एसडीएम। यानी गांव का कोई प्रतिनिधि नहीं।
तीसरी बात इस जमीन को वन एवं सिविल सोयम भूमि बताया गया। जबकि ग्रामीणों के अनुसार वास्तव में यह जमीन कभी वन विभाग की नहीं थी। खसरा खतौनी में जमीन गौचर के रूप में दर्शाई गई है, यानी कि जमीन पर ग्राम पंचायत का अधिकार है। लेकिन, लीज वन विभाग की तरफ से दी गई।

चौथी बात यह कि गौचर भूमि के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक फैसले में स्पष्ट व्यवस्था दी है कि गौचर भूमि किसी भी हालत में अधिग्रहीत नहीं की जानी चाहिए। यदि बहुत जरूरी हो तो एक निश्चित प्रक्रिया पूरी करने के बाद राज्य सरकार से अनुमति लेकर ही जमीन का अधिग्रहण किया जाना चाहिए। इस पर भी सुप्रीम कोर्ट की शर्त यह है कि हर हाल मंे ग्राम पंचायत के कुल क्षेत्रफल की 5 प्रतिशत भूमि गौचर भूमि होनी चाहिए।

लेकिन इस मामले में जब गांव की गौचर की जमीन को ही वन एवं सोयम भूमि दर्शाकर लीज वन विभाग की तरफ से दे दी गई तो फिर बाकी शर्तों का तो कोई मायने ही नहीं रह गया था। यानी की गांव वालों की इस जमीन को लेकर हर स्तर पर नियमों का उल्लंघन किया गया।
18 मार्च के लाठीचार्ज के बाद स्थानीय विधायक आशा नौटियाल गांव वालों के बीच पहुंची तो ग्रामीणों ने उनको जमकर खरी-खोटी सुना दी। ऐसी खरी-खोटी कि विधायक के मुंह से एक शब्द तक नहीं निकल पाया।

इस क्षेत्र के पूर्व विधायक मनोज रावत लगातार गांव वालों के साथ बने हुए हैं। धरना स्थल से लेकर देहरादून की प्रेस कॉन्फ्रेंस तक मनोज रावत साथ में हैं। वे कहते हैं कि यदि गांव की यह छोटी सी जमीन लोगों के हाथ से निकल गई तो पशुओं को चराने के लिए एक इंच भी जमीन नहीं रह जाएगी और ग्रामीणों का पशुधन समाप्त हो जाएगा। इस पूरे प्रकरण से आप समझ सकते हैं कि गौरक्षा का दावा करने वाली बीजेपी सरकार किस तरह से गौवंश का निवाला छीनने के प्रयास में जुटी हुई है। विरोध करने पर गांव वालों को विकास विरोधी कहा जा रहा है, जैसे कि बीजेपी वाले अक्सर कहते हैं। यह सब स्टेशन आसपास की किसी दूसरी जगह पर भी बनाया जा सकता है। लेकिन सब स्टेशन बनाने वाली गुजरात की ठेकेदारी कंपनी को यही जगह पसंद है।

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