प्रेमचंद अग्रवाल के इस्तीफे से कम नहीं हुई धामी की चुनौती?

कामरान कुरैशी

प्रेम चंद अग्रवाल प्रकरण के बाद मुख्यमंत्री के सामने अपना राजनैतिक कौशल साबित करने की बड़ी चुनौती, पढ़िए एक विश्लेषण।
प्रेम चंद अग्रवाल प्रकरण में धामी सरकार बुरी तरह फंसती हुई नज़र आ रही है। ये मामला सरकार के लिए एक तरफ कुआं दूसरी तरफ खाई वाला बन गया है। जिससे निकलना पुष्कर धामी के लिए कठिन साबित होने जा रहा है। संभवतया भाजपा के रणनीतिकारों को लगा होगा कि प्रेम चंद अग्रवाल के इस्तीफे के बाद मामला शांत हो जायेगा और सरकार धर्म संकट से बाहर निकलेगी लेकिन यहाँ भाजपा कई महत्वपूर्ण पहलुओं पर गौर करना भूल गई।

प्रेम चंद अग्रवाल के इससे पहले के कारनामों का विरोध तो हुआ था, लेकिन उस समय सरकार या भाजपा उन विरोधों को ठंडे बस्ते में डालने में कामयाब हो गई थी। भाजपा को लग रहा था कि ऐसा ही कुछ इस बार भी होगा और कुछ दिन के विरोध के बाद मामला रफा दफा हो जायेगा। लेकिन इस बार जनता का विरोध सारी सीमाएं पार कर गया इसलिए भाजपा का पहली वेट एंड वॉच की रणनीति असफल हुई।

इस प्रकरण के बाद से ही सोशल मीडिया पर स्पष्ट दिखाई दे रहा था कि जनता के निशाने पर केवल प्रेम चंद अग्रवाल ही नहीं है अपितु ऋतु खंडूरी, महेंद्र भट्ट और सुबोध उनियाल भी है और उन्हें भी सीधे सीधे सवालों के घेरे में खड़ा किया जा रहा है। इस मामले को इग्नोर करना भाजपा की दूसरी गलती साबित हुई है। आज जब प्रेम चंद अग्रवाल ने इस्तीफा दिया तो उसके कुछ देर बाद ही सोशल मीडिया पर इन तीनों को अगला निशाना बनाए जाने की पोस्ट वायरल होने लगी। सीधी सी बात है। अगर प्रेम चंद अग्रवाल की तर्ज पर इनका भी विरोध बढ़ता गया तो भाजपा के लिए प्रेम चंद अग्रवाल के समान इनका इस्तीफा लेना मुश्किल हो जायेगा। आखिर कब तक पार्टी जन दबाव में एक के बाद एक नेताओं की बली ले पाएगी। ये करना पार्टी के लिए 2027 के चुनाव से पहले आत्महत्या करने के समान होगा, पार्टी की छवि कमजोर हो जायेगी और अगला चुनाव जीतना मुश्किल हो जायेगा। इसके उलट ऋतु खंडूरी, महेंद्र भट्ट और सुबोध उनियाल के पार्टी ने बने रहने पर भी नुकसान होना तय है। यानी एक तरफ कुआं दूसरी तरफ खाई वाली स्तिथि हो गई है।

मैदानवाद और पहाड़वाड़ के बीच छिड़ने वाली जंग को ना समझ पाना एक और कमजोर कड़ी साबित हुई है। जो लोग सोशल मीडिया पर एक्टिव रहते हैं वो इस बात को समझ सकते हैं कि इस प्रकरण के सामने आने के बाद से ही मैदानवाद और पहाड़वाड की तलवारे सोशल मीडिया पर खींचनी शुरू हो गई थी। और प्रेम चंद अग्रवाल के इस्तीफे के तुरंत बाद मैदानी मंच ने बाजार बंद और चक्का जाम की घोषणा कर इस विवाद को और हवा दे दी है।

भाजपा को अब एक साथ कई मोर्चों पर लड़ाई लड़नी होगी और इन सबमें जरा सी चूक सीधे सीधे पुष्कर सिंह धामी की योग्यता पर सवाल तो खड़ा करेगी ही साथ ही उनके लिए मुख्यमंत्री बने रहना भी मुश्किल हो जायेगा।
आज होने वाले बाजार बंद और चक्का जाम और बाजार बंद करने वाले व्यापारियों के बहिष्कार की चेतावनी भी आने वाले दिनों में उत्तराखंड के राजनीतिक घटनाक्रम में बड़ा असर डालने वाली है। वही दूसरी तरह बॉबी पवार ने पहाड़ी स्वाभिमान पार्टी की घोषणा कर दी है। ये भाजपा के लिए एक बड़ा सर दर्द साबित हो सकता है, और भाजपा के वोट बैंक में बड़ा सेंध लग सकता है।

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