अलविदा मनमोहन सिंह : छोटा दिल दिखाया मोदी ने

त्रिलोचन भट्ट

 

देश के पूर्व प्रधानमंत्री और महान अर्थशास्त्री डॉ. मनमोहन सिंह की पार्थिक देह का शनिवार को अंतिम संस्कार कर दिया गया। उन्हें दिल्ली में राजघाट के आसपास कहीं दो गज जमीन नहीं मिल पाई, जैसे कि पूर्व प्रधानमंत्रियों को मिलती रही है। अंतिम संस्कार निगमबोध घाट पर किया गया। मौजूदा स्वयंभू विश्वगुरु ने बेशक डॉ. मनमोहन सिंह को उनके जीते जी हार्वर्ड और हार्ड वर्क कहकर उन पर फब्ती कसी हो, बेशक भरी संसद में रैन कोट पहनकर नहाते हैं, जैसी घटिया गुमलेबाजी की हो या फिर उनके निधन के बाद बेशक आम लोगों की तरह निगमबोध घाट पर उनका अंतिम संस्कार करने का फैसला किया हो। इस सबसे डॉ. मनमोहन सिंह का कद छोटा नहीं हो जाता, बल्कि आपका असली नफरती चेहरा ही इससे उजागर होता है। डॉ. मनमोहन सिंह को आप और आपकी नफरती जमात बेशक खूब बुरा-भला कहे, लेकिन सच्चाई ये है कि उनके जैसा बनने के लिए आपको सात नहीं सात सौ जन्म लेने पड़ें, तब भी नहीं बन पाओगे। अभिनेता नसरुद्दीन शाह यदि लिखते हैं कि वो आसमां था लेकिन सिर झुका के चलता था, तो बिल्कुल सही कहते हैं।

डॉ. मनमोहन सिंह के निधन के बाद आप लगातार उनके कार्यों और उनकी योग्यताओं के बारे में पढ़ रहे होेंगे और सुन रहे होंगे। उन्हें गालियां देने वाली जमात पर भी आपकी नजर जरूर पड़ी होगी। मैं यहां उन्हें श्रद्धांजलि के लिए लिखी गई दो लोगों की टीप आपके सामने रखूंगा। एक उनके निजी जीवन के बारे में है और दूसरी तकनीकी को लेकर उनके ज्ञान के बारे में। इन दोनों टीपों को लिखने वाले लोग अगल-अलग क्षेत्रों से हैं और दोनों के विचारधाराएं भी अलग हैं। दोनों टिप्पणियां बहुत कुछ बता देती हैं, पूर्व प्रधानमंत्री के बारे में।

डॉ. मनमोहन सिंह के निधन पर एक टिप्पणी सीनियर जर्नलिस्ट और एक्टिविस्ट राजीव नयन बहुगुणा ने लिखी है। वे लिखते हैं- मनमोहन सिंह को मैंने पहली बार सम्भवतः 1995 के आसपास कभी आमने सामने देखा और सुना था। वे आम चुनावों में कांग्रेस के हित में जनसभा सम्बोधित करने आये थे, और मैं जयपुर की चौपड़ पर एक रिपोर्टर के नाते उन्हें कवर करने की ड्यूटी पर तैनात था। गहराती शाम को उन्हें सुनने वास्ते सचमुच कुछ दर्ज़न श्रोता उपस्थित थे। उन्होंने अपनी धीमी और सौम्य आवाज़ में देश की सामाजिक और आर्थिक व्यवस्था को लेकर कुछ बातें कीं। महात्मा गाँधी और पंडित नेहरू आदि की स्तुति की, लेकिन किसी के विरुद्ध कुछ नहीं कहा। उनकी स्वर लिपि शुरू से आखि़र तक एक जैसी रही। फिर वह कांख में एक फाइल दाबे चुपचाप निकल गये।

उसके कुछ देर बाद उसी सभा में, मुझे ठीक याद है कि हाथ पांव और आंखें झटकाता, मटकाता राजेश खन्ना आया। आसपास की थड़ियों से चाय पीते लौंडे लपाड़ी और छपरी लपके दौड़े चले आये। राजेश खन्ना ने मंच पर आते ही माइक संभाल कर कहा – हे भगवान! तू इंसान को पेट न दे, और पेट देता है तो रोटी ज़रूर दे। खूब तालियां और सीटियां बजीं.
तभी मैंने अपने सहयोगी रिपोर्टर से कहा कि अब देश में किसी भी दिन कोई नट, नर्तक, जगलर, डायलॉग बाज़ अथवा प्रगल्भ असत्यभाषी सत्ता शीर्ष पर काबिज़ हो जायेगा। मेरी आशंका सच साबित हुई।

दूसरी टिप्पणी के लेखक डॉ. ईशान पुरोहित हैं। वे सौर एनर्जी स्पेशलिस्ट हैं। विश्व बैंक को अपनी विशेषज्ञ सेवाएं देते हैं। उनकी टिप्पणी लंबी है, मैं संक्षित में पढ़ने जा रहा हूं। ये टिप्पणी बताती है कि कितने दूरदर्शी और तकनीकी के जानकार थे डॉ. मनमोहन सिंह। यह भी कि आज के विश्वगुरु जो कुछ चल पा रहे हैं, वह वास्तव में डॉ. मनमोहन सिंह की योग्यता और दूरदर्शिता की बदौलत ही चल पा रहे हैं। उनकी टिप्पणी का शीर्षक है- डॉ मनमोहन सिंह: खामोश सफलता की शख्सियत। लिखते हैं-

वर्ष 2007 में मैंने उस दौर में देश दुनिया के अनूठे संस्थान टेरी में नियुक्ति पाई। टेरी देश दुनिया की उस वक्त एकमात्र ऑर्गेनाइजेशन थी जो क्लाइमेट चेंज, सस्टेनेबिलिटी जैसे विषयों पर शोध करती थी। टेरी पीएमओ के लिए एक विजन डॉक्युमेंट बना रहा था, जिसका नाम था ‘नेशनल एक्शन प्लान ऑफ़ क्लाइमेट चेंज, यानी एनएपीसीसी। उसे कैबिनेट की स्वीकृति मिलने के बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह द्वारा लॉन्च किया गया, जो देश दुनिया के सामने भारत के क्लाइमेट कमिटमेंट का मास्टर प्लान था। इस ऐक्शन प्लान में कुल आठ मिशन थे जिसमें पहला मिशन नेशनल सोलर मिशन था जिसको तत्कालीन सरकार ने पूर्व प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के नाम पर लॉन्च किया जिसका कुल टारगेट देश में वर्ष 2022 तक 20 गीगावॉट के सोलर पावर प्रोजेक्ट्स स्थापित करना था। डॉ. पुरोहित कहते हैं कि उनकी सोलर यात्रा भी इसी मिशन के साथ शुरू हुई थी। यह मिशन सफल रहा और फिर नरेन्द्र मोदी भी इसी राह पर चले।

आगे वे लिखते हैं कि वर्ष 2011 में सोलर एनर्जी कॉर्पाेरेशन ऑफ़ इण्डिया (सेकी) की स्थापना की गई, और सोलर प्रोजेक्ट्स के लिए सिंगल विंडो मॉडल स्थापित किया गया, जो शायद ही दुनिया के दूसरे किसी देश में उस वक्त था। इसी सेकी को पिछले वर्ष नवरत्न कंपनी का दर्जा मिल चुका है। आज देश तकरीबन 100 गीगावॉट की सोलर पावर क्षमता स्थापित करने के करीब है, जिसका बेस मॉडल डॉ मनमोहन सिंह ने ही देश में रखा था।

आगे लिखते हैं कि मोदी साहब ने जब प्लानिंग कमीशन को भंग करके नीति आयोग में कुछ दरबारी जमूरे बिठाये तो उनको लगा था कि पता नहीं ये लोग उनके हाथ में पॉलिसी और प्लानिंग की कोई जादुई छड़ी थमा देंगे। लेकिन हुआ ये कि नीति आयोग खुद मैनेजमेंट्स कंसल्टैंसीज़ के भरोसे चल रहा है। इसी की बदौलत मोदी साहब आज सीओपी या किसी भी अंतर्राष्ट्रीय मंच पर अपने नंबर बढ़ा रहे हैं। आज जब हम एनडीसी की बात करते हैं तो वर्ष 2030 तक 500 गीगावॉट क्लीन एनर्जी दरअसल सोलर मिशन का ही एक्सटेंशन है और कुछ नहीं। कम से कम इस बात के लिए तो मोदी साहब को मनमोहन सिंह सर का शुक्रिया अदा करना चाहिए कि जो आज तक नहीं सोचा जा पा रहा है उसकी स्थापना ही उन्होंने अपने कार्यकाल में सफलता पूर्वक कर दी थी। डॉ. पुरोहित ने और भी बहुत कुछ लिखा है अपनी फेसबुक टिप्पणी हैं। आप चाहें तो उनकी वाल पर जाकर पढ़ सकते हैं।

डॉ. मनमोहन सिंह को बारे में नफरती जमात कुछ भी कहती रहे, लेकिन ये दो टिप्पणियां हैं, जो उनकी सादगी और उनकी दूरदृष्टि को स्पष्ट तौर से हमारे सामने रखती हैं। क्या फर्क पड़ता है कि उनका अंतिम संस्कार एक आम नागरिक की तरह निगमबोध घाट पर कर दिया गया। वैसे भी वे आम ही तो थे। जब उनसे उनकी सुरक्षा छीन ली गई और फिर पूर्व प्रधानमंत्री के रूप में उनका सचिवालय छीन लिया गया तो उन्होंने कुछ कहा? नहीं न… मौजूदा विश्वगुरु उनकी जगह होते तो क्या करते, हम कल्पना कर सकते हैं। पाकिस्तान से उजड़कर आये थे। पिता की उन्हीें के सामने गंदाइयों ने हत्या की थी, किसी तरह नई जगह आकर उन्होंने गुजारा किया। अपना एक ऐसा बायोडाटा तैयार किया, जिसे देखकर कोई भी चौंक सकता है। लेकिन, उन्होंने अपनी गरीबी का रोना कभी नहीं रोया। ऑक्सफोर्ड, कैम्ब्रिज से लेकर आरबीआई के गवर्नर और भारत के प्रधानमंत्री होकर भी वे भारत के आम नागरिक ही बने रहे। हमारी विनम्र श्रद्धांजलि।

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