एनटीपीसी की टनल है जोशीमठ के हेड इंजरी
डायरी : दरकते, धंसते जोशीमठ की कहानी भाग-3
यह डायरी धंसते-दरकते जोशीमठ की तीन दिन की यात्रा का वृतांत लिखने का प्रयास है। डायरी के कुछ हिस्से हेराल्ड ग्रुप के अंग्रेजी अखबार नेशनल हेराल्ड, हिन्दी अखबार नवजीवन और उर्दू अखबार कौमी आवाज ने प्रकाशित किये हैं। यहां सम्पूर्ण डायरी प्रकाशित की जा रही है – त्रिलोचन भट्ट
आज 11 जनवरी है, 2023 की। आधा दिन जोशीमठ और कुछ घंटे तपोवन-विष्णुगाड परियोजना से सबसे ज्यादा प्रभावित सेलंग गांव में रहने के बाद वापस लौट आया हूं। श्रीनगर गढ़वाल के एक होटल में रुका हुआ हूं। कोशिश कर रहा हूं, जोशीमठ में इस बार जो कुछ देखा और महसूस किया उसे कलमबद्ध करूं। इस बार जब पूरा मीडिया और पूरा प्रशासन जोशीमठ में था तो मैंने अपने साथियों राजू सजवान और सन्नी गौतम के साथ आसपास के रैणी और सुभाईं गांवों के हालात देखने का भी फैसला किया और वापस लौटते हुए कुछ देर सेलंग गांव में हम लोग रुके।
श्रीनगर आते हुए रास्ते में भूवैज्ञानिक डॉ. एस.पी. सती की एक फेसबुक पोस्ट दिखी। उन्होंने लिखा है कि जोशीमठ ही नहीं पहाड़ के कई और नगर-कस्बे और अन्य क्षेत्र भी हैं, जिनमें भविष्य में इसी तरह का धंसाव हो सकता है। डॉ. सती स्वतंत्र भूवैज्ञानिकों की उस टीम में भी शामिल थे, जिसने कुछ महीने पहले जोशीमठ के लोगों के आग्रह पर धंसाव के कारणों की जांच की थी और अन्य बातों के अलावा इस धंसाव के लिए एनटीपीसी की तपोवन-विष्णुगाड परियोजना की टनल को भी जिम्मेदार ठहराया था। इस आशंका के कारणों को जानने के लिए मैंने डॉ. सती को फोन मिलाया। उन्होंने बताया, जोशीमठ एक पुराने भूस्खलन के मलबे पर बसा हुआ है और उसकी जमीन खोखली है। उत्तराखंड में कई दूसरे हिस्सों में भी ठीक ऐसी ही भौगोलित परिस्थितियां हैं।
डॉ. सती ने गोपेश्वर, पौड़ी, श्रीनगर, गुप्तकाशी, ऊखीमठ, धारचूला, नैनीताल, मुनस्यारी सहित कई जगहों के नाम लिये, जहां भविष्य में इस तरह से धंसाव की समस्या पैदा हो सकती है। उनका कहना था ये वे नगर कस्बे हैं, जहां का ड्रेनेज की कोई व्यवस्था नहीं है और प्राकृतिक ड्रेनेज सिस्टम का हमने शहरीकरण के चक्कर में गला घोंट दिया है। डॉ. सती से मैंने जोशीमठ के लेकर उनके आकलन के बारे में जानना चाहा। उन्होंने कहा, सरकारी एजेंसियां कोई भी दावा करें, लेकिन सच्चाई यह है कि जोशीमठ पूरी तरह असुरक्षित हो चुका है। अब जोशीमठ को बचाने की बात करना फिजूल है, अब तो जोशीमठ वालों को बचाने की बात होनी चाहिए।
कल कुछ देर के लिए मैं जोशीमठ तहसील परिसर में चल रहे धरने में शामिल हुआ था। हालांकि मैं एक पूरा दिन जोशीमठ बचाओ संघर्ष समिति के इस धरने के समर्थन में वहां रहना चाहता था, लेकिन पूरे जोशीमठ और रैणी, सुभाईं गांवों में भी हालात का जायजा लेने की योजना बन जाने के कारण कुछ ही घंटे यहां रुक पाया। मैंने संघर्ष समिति के संयोजक अतुल सती और वहां मौजूद इंद्रेश मैखुरी, कपूर रावत, कांग्रेस विधायक राजेन्द्र भंडारी, पूर्व ब्लॉक प्रमुख प्रकाश रावत आदि से जानना चाहा कि आखिर समस्या का हल क्या है? क्या पूरे जोशीमठ को किसी सुरक्षित जगह पर शिफ्ट किया जाना चाहिए? इस प्रश्न का हालांकि कोई स्पष्ट उत्तर नहीं मिल पाया। लेकिन, वहां मौजूद लोगों से हुई बातचीत और धरने में चल रहे भाषणों से यह बात तो साफ हो ही गई कि जोशीमठ का पूर्ण विस्थापन कोई हल नहीं है। यह सिर्फ कुछ हजार मकानों का एक शहर नहीं है। इस शहर की एक सांस्कृतिक विरासत है। और सबसे बड़ी बात हजारों लोगों का रोजगार इस शहर से जुड़ा हुआ है। खासकर बदरीनाथ और हेमकुंड जाने वाले श्रद्धालु और औली व फूलों की घाटी जाने वाले पर्यटक इस पूरी घाटी की अर्थव्यवस्था की रीढ़ हैं। जोशीमठ नीती और माणा घाटियों की आर्थिक गतिविधियों को प्रमुख केन्द्र है। शहर के विस्थापन का अर्थ है हजारों लोगों की रोजी-रोटी को तबाह कर देना। फिलहाल जोशीमठ के लोग चाहते हैं कि एनटीपीसी का प्रोजेक्ट पूरी तरह बंद किया जाए। जगह-जगह एनटीपीसी गो बैक के पोस्टर भी इस बात के गवाह हैं कि यहां के लोग हर हाल में इस परियोजना को बंद करना चाहते हैं।
मैंने महसूस किया कि जोशीमठ के दो ऐसे हिस्से हैं, जो ऊपर से नीचे उतरती पट्टी में सबसे ज्यादा प्रभावित हैं। एक पट्टी सुनील गांव से शुरू होकर छावनी बाजार और गांधी नगर से होकर बदरीनाथ रोड पर जीरो बैंड से नीचे तक चली गई है। दूसरी पट्टी औली रोड से शुरू होकर मनोहर बाग, सिंहधार होते हुए जोशीमठ के ठीक निचले हिस्से, मारवाड़ी में बनाई गई जेपी की विष्णुगाड परियोजना की रिहायशी कॉलोनी तक चली गई है। यहीं पर कुछ दिन पहले से लगातार पानी का रिसाव हो रहा है। स्थानीय लोगों से हुई बातचीत और भूवैज्ञानिकों द्वारा किये गये आकलन से यह बात साफ हो जाती है कि कटाव विष्णुप्रयाग के पास अलकनन्दा के तट से शुरू होकर जोशीमठ के ऊपरी हिस्सों तक चला गया है।
मारवाड़ी में रिसते पानी के बहाव का निरीक्षण करते हुए मैं विष्णुप्रयाग में अलकनन्दा पुल के पास तक गया। वहां चाय के एक खोमचे पर पंवार जी मिलते हैं। उनका नाम नोट नहीं कर पाया था, अब भूल गया हूं। पंवार जी चाईं गांव के हैं। चाईं गांव जोशीमठ के ठीक सामने अलकनन्दा के दूसरी तरफ है, जो कई वर्ष पहले जोशीमठ जैसी आपदा का शिकार हो चुका है। पिछली बार मैं अपने मित्र और जोशीमठ नगर पालिका पूर्व सभासद प्रकाश नेगी के साथ चाईं गांव गया था। चाईं वह गांव है, जिसके भूगर्भ में जेपी पावर वेंचर कंपनी की विष्णुगाड परियोजना का पावर हाउस और अन्य निर्माण हैं। गांव के पीछे की पहाड़ी से इस परियोजना की टनल है। जोशीमठ क्षेत्र में दूध और फल उत्पादक गांव के रूप में पहचान रखने वाला चाईं गांव जेपी की विष्णुगाड जल विद्युत परियोजना के कारण करीब 22 वर्ष पहले ठीक वैसे ही धंस गया था, जैसे आज जोशीमठ धंस रहा है। मैंने पंवार जी से मुआवजे के बारे में पूछा। अपने खोमचे पर लगी टिन की चद्दरें दिखाते हुए वे कहते हैं, ऐसी नौ चद्दरें मिली थी मुआवजे के नाम पर।
चाईं गांव आज भी धंस रहा है। पंवार जी कहते हैं, 60-65 परिवारों के गांव में केवल 18 परिवारों को मारवाड़ी में घर बनाने के लिए जमीन मिली थी। उन्होंने घर बनाये लेकिन खेती-बाड़ी के लिए गांव ही आते हैं। अब तो मारवाड़ी भी असुरक्षित है। जोशीमठ धंसेगा तो नीचे मारवाड़ी में ही आएगा। वे कहते हैं, उस समय परियोजना की टनल से निकलने वाले बारूद वाले मलबे से पहले उनके पशु मरे, फिर पेड़-पौधे नष्ट हो गये। खेती पर अब कुछ नहीं होता, सिर्फ टाइमपास करते हैं। गांव के लोग भी उन्हीं असुरक्षित घरों में हैं। पता नहीं कब गांव धरती में समां जाए। जोशीमठ की पीड़ा देखने आया था, चाईं की पीड़ा फिर ताजा हो आई।
जोशीमठ के सबसे ज्यादा प्रभावित इलाकों में मनोहर बाग नाम की घनी बस्ती शामिल है। औली वाली रोड से नीचे उतरते ही पहला घर सूरज कपरवान का है। सूरज मुझे अपने घर से लगते अपने खेत दिखाते हैं। घर से लेकर खेतों से होती हुई दूर तक एक चौड़ी दरार नजर आ रही है। घर का बड़ा हिस्सा दरक गया है। खेतों में दरार तीन फुट तक चौड़ी है। घर से कुछ ही दूरी पर औली रोपवे का पहला टावर है। टावर की ठीक नीचे भी दरार है। सूरज बताते हैं कि टावर भी टेढ़ां हो गया है। ट्रॉली संचालन बंद कर दिया गया है। ट्रॉली टावर के कुछ मीटर नीचे एक घर पूरी तरह दरक गया है। कमरों का फर्श कई टुकड़ों में टूटा हुआ है। फर्श कहीं ऊपर उठ गया है और कहीं नीचे धंस गया है। सभी कमरों का सामान निकालकर एक जगह जमा कर दिया गया है।
ये घर चंद्रबल्लभ पांडेय और उनके भाई का है। चंद्रबल्लभ बदहवास हैं। बाहर नौकरी कर रहे अपने दोनों बेटों को बुला लिया है। घर में एक भी ऐसा कमरा नहीं, जिसमें रह सकें। दोनों परिवारों के रहने लायक कोई जगह भी अब तक प्रशासन ने नहीं दी है। चंद्रबल्लभ पांडे बताते हैं, उनका गांव जोशीमठ से कुछ दूर पाताल गंगा से लगता गणाईं गांव है। गणाईं गांव दो तरफ से दरक रहा है और कई सालों से असुरक्षित गांव घोषित है। गांव के लोग पुनर्वास की बाट जोहते रहे, लेकिन कुछ नहीं हुआ। अपनी सुरक्षा खुद करने के लिए ज्यादातर परिवार जोशीमठ या अन्य जगहों पर शिफ्ट हो गये हैं। चंद्रबल्लभ पांडे आगे कहते हैं, सुरक्षित रहने के लिए यहां आये थे, यहां भी वही हालत हो गई। पास बैठी चंद्रबल्लभ पांडे की भाभी लगातार आंसू बहा रही हैं। उनके घावों को कुरेदना मैंने ठीक नहीं समझा।
जारी…