संदेशखाली पर शोर, अंकिता पर मौन

त्रिलोचन भट्ट

 

हिलाएं संदेशखाली की हों, मणिपुर की या फिर उत्तराखंड की। सभी का सम्मान बराबर होता है। लेकिन, यदि मणिपुर की महिलाओं को निर्वस्त्र करने के मामले में मौन साधने वाले, अंकिता भंडारी हत्याकांड की निन्दा तक न करने वाले लोग, संदेशखाली की घटना को लेकर शोर मचाने लगें तो हमें समझ जाना चाहिए कि इनका मकसद महिलाओं का सम्मान नहीं बल्कि कुछ और है। इन मुद्दों पर इस वीडियो में बात करेंगे। अंकिता भंडारी की लड़ाई लड़ रहे आशुतोष नेगी की गिरफ्ताारी पर भी बात होगी और इंडिया अलाइंस और सिविल सोसायटी के प्रतिनिधि मंडल ने मुख्य सचिव और डीजीपी से मिलकर क्या कहा, इस बारे में जानकारी लेंगे।

सबसे पहले बात करें आशुतोष नेगी की गिरफ्तारी की। पत्रकार आशुतोष नेगी अंकिता भंडारी हत्याकांड को लेकर चर्चाओं में आये। वे इस मुद्दे पर लगातार लड़ते रहे। मामले की सीबीआई जांच करवाने को लेकर अंकिता के माता पिता को लेकर हाई कोर्ट तक पहुंचे। कहना न होगा कि अंकिता को न्याय दिलाने की लड़ाई में आशुतोष नेगी की भूमिका बेहद महत्वपूर्ण रही है। पिछले आठ दिनों से वे श्रीगनर में अंकिता के माता-पिता और कुछ अन्य लोगों के साथ श्रीनगर में धरना दे रहे थे। कल यानी 5 मार्च को पुलिस ने उन्हंे गिरफ्तार कर लिया। पुलिस कर्मियों द्वारा उनके साथ धक्का-मुक्की करने का एक वीडियो भी वायरल हो रहा है।

हालांकि आशुतोष नेगी की गिरफ्तारी एससीएसटी के तहत दर्ज एक मामले में हुई है। यह मामला राजेश कोली नामक एक व्यक्ति ने 28 जुलाई 2022 को दर्ज करवाया था। अंकिता की हत्या सितंबर 2022 में हुई थी। यानी कि इस मामले का अंकिता हत्याकांड से कोई लेना-देना नहीं है। लेकिन, फिर भी कुछ सवाल हैं जो सत्ता से और पुलिस से पूछे जाने चाहिए। गिरफ्तारी की टाइमिंग को लेकर पहला सवाल उठता है। करीब पौने दो साल पहले दर्ज मुकदमें में गिरफ्तारी ऐसे समय क्यों की गई, जब वे राज्य के एक बड़े मसले को लेकर धरना दे रहे थे। इस तरह से की गई गिरफ्तारी यह संदेश तो देती है कि अंकिता हत्याकांड को लेकर दिया जा रहा यह धरना लोकसभा चुनाव से ठीक पहले सत्ताधारी पार्टी की किरकिरी कर रहा था, इसलिए धरने का नेतृत्व कर रहे आशुतोष को उठा लिया गया।


हालांकि जिस राजेश कोली की शिकायत पर आशुतोष नेगी को गिरफ्तार किया गया, वह लगातार सोशल मीडिया पर सक्रिय हैं और अपने साथ हुई जातीय हिंसा की बात कर रहे हैं। आशुतोष नेती की गिरफ्तारी के बाद भी राजेश कोली ने एक वीडियो जारी किया और कहा कि आशुतोष नेती इस मामले को दूसरी तरफ ले जा रहे हैं। मुझे फर्जी अनुसूचित जनजाति का बता रहे हैं, जबकि मेरे पास प्रमाण पत्र मौजूद है। वैसे यह बात भी सामने आई है कि राजेश कोली की शिकायत की राजस्व पुलिस ने जांच की थी और शिकायत झूठी पाई गई थी। मामला खत्म हो गया था। इस बार नये सिरे से राजेश कोली की तरफ से शिकायत की गई। संभव है कि पटवारी ने जातिगत कारणों से गलत रिपोर्ट दी हो, लेकिन ऐसे मौके पर जब अंकिता भंडारी को मामला फिर से उठा हो, ऐन वक्त पर दुबारा शिकायत वह भी कई महीनों के बाद, संदेह पैदा करती है।

दूसरी खबर। 5 मार्च को ही एबीवीपी ने संदेशखाली की महिलाओं को न्याय दिलाने के लिए प्रदर्शन किया। बिल्कुल इस तरह की घटनाओं का विरोध किया जाना चाहिए। लेकिन, प्रदर्शन करने वाले इस संगठन और इनकी पार्टी ने यह सवाल तो पूछा ही जाना चाहिए कि मणिपुर में निर्वस्त्र की गई महिलाओं का सम्मान क्या संदेशखाली की महिलाओं के सम्मान से कम था? यह भी पूछा जाना चाहिए कि उत्तराखंड की अंकिता भंडारी को न्याय दिलाने के लिए किये गये आंदोलनों में हिस्सा लेने की इन लोगों ने क्यों कभी जरूरत नहीं समझी? उत्तराखंड के लोगों को इस बात पर जरूर गौर करना होगा कि पहाड़ की बेटी के लिए एक शब्द तक मुंह से न निकालने वाले लोगों को आखिर संदेशखाली की महिलाओं के सम्मान की इतनी चिन्ता कैसे हो गई? साफ है कि इन लोगों का महिला सम्मान से कोई लेना-देना नहीं है। वे इस तरह के हथकंडे अपनाकर सिर्फ अपना राजनीतिक स्वार्थ सिद्ध करने की कोशिश कर रहे हैं।


एक घटना 5 मार्च को उत्तरकाशी जिले के बड़कोट में भी हुई। यहां मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी का रोड शो चल रहा था, इस दौरान एक मकान की छत पर चढ़कर कुछ लोगों ने बैनर लहराते हुए पुष्कर धामी गो बैक, अंकिता को न्याय दो और भूकानून लागू करो के नारे लगाने शुरू कर दिये। पुलिस कर्मियों ने आनन-फानन में छत पर जाकर उनके हाथों से बैनर छीन लिये और उन्हें वहां से हटा दिया। मुख्यमंत्री के इस रोड शो और इससे संबंधित खबरें कई पन्नों तक फैलाने वाले अखबारों ने इस घटना को लेकर एक लाइन भी नहीं लिखी। खासकर उस अखबार ने, जो मेरे घर आता है।

आज यानी 6 मार्च को राज्य में हो रही घटनाओं को लेकर इंडिया अलायंस से जुड़े राजनीतिक दलों और सिविल सोसायटी के लोगों ने मुख्य सचिव राधा रतूड़ी और पुलिस महानिदेशक अभिनव कुमार से मुलाकात कर उन्हें ज्ञापन सौंपा। प्रतिनिधि मंडल में कांग्रेस के शीशपाल बिष्ट, सीपीएम के सुरेन्द्र सजवाण, सीपीआई के समर भंडारी, आम आदमी पार्टी की उमा सिसोदिया, उत्तराखंड इंसानियत मंच की कमला पंत, उत्तराखंड महिला मंच की निर्मला बिष्ट और चेतना आंदोलन के शंकर गोपाल मौजूद थे। सिविल सोसायटी के एक सदस्य के रूप में मैं भी इस प्रतिनिधि मंडल के साथ मौजूद था।

प्रतिनिधि मंडल ने दोनों अधिकारियों के साथ बातचीत में मुख्य रूप से हल्द्वानी के बनभूलपुरा का मामला उठाया और वहां निर्दोष लोगों के साथ ज्यादाती करने की बात कही। समुदाय विशेष को लोगों को दुकाने न खोलने देने की भी शिकायत की। आशुतोष नेगी की गिरफ्तारी के तरीके को लेकर भी प्रतिनिधिमंडल ने सवाल उठाया और कहा कि जिन पुलिस कर्मियों ने उन्हें गिरफ्तार किया उनकी नेम प्लेट नहीं थी और गिरफ्तारी की सूचना उनके परिवार को भी नहीं दी गई।

 

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