सुरंग हादसा: शर्म को गर्व में बदलने का खेल

त्रिलोचन भट्ट 

41 जिन्दगियां पूरे 17 दिन अंधेरी सुरंग में फंसी रही, टेक्नोलॉजी के इस युग में, जब हम इस बात पर इतरा रहे हों कि हम चांद पर पहुंच गये हैं, यह शर्मनाक स्थिति है। लेकिन, बेशर्मी देखिये कि 17 दिन बाद जब सुरंग में फंसे इन मजदूरों को निकाला गया तो सरकार ने इसे इंवेेेंट बना दिया। कुछ संकेत स्पष्ट हैं। सरकार के पास सुरंग में फंसे मजदूरों को बाहर निकालने की तकनीक बेशक न हो, लेकिन शर्म को गर्व में बदलने की तकनीकी केवल इसी सरकार के पास है।

सिलक्यारा-बड़कोट सुरंग गंगोत्री और यमुनोत्री के बीच है। प्रधानमंत्री की ड्रीम प्रोजेक्ट कहे जाने वाले तथाकथित ऑल वेदर रोड  प्रोजेक्ट के तहत यह 4.5 मीटर लंबी और 14 मीटर चौड़ी टनल बनाई जा रही है। गंगोत्री और यमुनोत्री के बीच 26 किमी की दूरी कम करने के लिए यह सुरंग बनाई जा रही है। इस प्रोजेक्ट में कई अन्य सुरंगे भी हैं। 12 नवंबर की सुबह इस सुरंग के अंदर भूस्खलन हो गया। करीब 60 मीटर मलबा सुरंग में आ गया और सुरंग बंद हो गई। सुरंग हालांकि दूसरी तरफ से भी बन रही है। लेकिन बीच का करीब आधा किमी का हिस्सा अभी नहीं काटा गया है। इस भूस्खलन से बड़ी संख्या में मजदूर वहां फंस गये थे। पहले बताया गया कि 40 मजदूर सुरंग में हैं, बाद में यह संख्या 41 बताई गई। हालांकि इस संख्या को लेकर भी लोग अब सवाल उठाने लगे हैं।

हादसे के बाद जेसीबी से मलबा हटाकर मजदूरों को निकालने का प्रयास शुरू हुआ तो ऊपर से और मलबा आने लगा। इसके बाद यह काम बंद कर दिया गया। वर्टिकल ड्रिलिंग की बात भी मशीन न होने के कारण सिरे नहीं चढ़ी। अगले दो दिन तक तो किसी को समझ  ही नहीं आया कि करना क्या है। रास्ता अंदर फंसे मजदूरों ने ही दिखाया। उन्होंने वहां लगी मोटर से पानी चला दिया। इसके बाद बाहर बैठे आपदा प्रबंधकों को समझ आया कि 4 इंच के इस पाइप का कुछ इस्तेमाल हो सकता। इस पाइप के जरिये अगले कुछ दिन तक मजदूरों से बातचीत की गई। उन्हें कुछ चना-चबेन भेजा गया और इसी पाइप से उन्हें ऑक्सीजन भी भेजा गया। बाद में एक और 6 इंच का पाइप मजदूरों तक पहुंचाने में सफलता मिली, जिसके जरिये उन्हें खिचड़ी और कुछ दूसरा जरूरी सामान भेजा जाने लगा।

रैट होल मैनर्स की टोली, जिन्होंने मशीनों के फेल हो जाने के बाद मोर्चा संभाला।

मजदूरों को बाहर निकाल लिये जाने के बाद कहा जा रहा है कि यह सब मोदी और धामी के प्रयासों से संभव हो पाया। उनके दिशा-निर्देश में ही मजदूरों को इतने दिनों तक जिन्दा रखा जा सका और आखिरकार बाहर निकाला जा सका। दरअसल यदि मजदूर 17 दिन तक सुरंग में जिन्दा रहे हैं तो अपनी जीवटता के कारण रहे हैं। कोविड लॉकडाउन में जब आने-जाने के सभी साधन बंद कर दिये गये थे तो मजदूरों ने कैसा दम-खम दिखाया था, हमें याद है।

रेस्क्यू ऑपरेशन में जब भारी-भरकम मशीनें ध्वस्त हो गई और आस्ट्रेलिया से बुलाये गये कथित टनलिंग एक्सपर्ट कुछ करने के बजाए एक महीने में मजदूरों को निकालने का बयान देने लगे तो हाथों में छेनी हथौड़ी और फावड़े लिये मजदूर काम आये। 12 सदस्यों वाली रैट माइनर्स की टोली के सदस्य दो-दो कर बारी-बारी से पाइपों के अंदर घुसे, एक आदमी के आने लायक छेद बनाया और आखिकार फंसे हुए लोगों को रेस्क्यू कर लिया गया। रैट माइनर्स की इस टोली में फिरोज कुरैशी, मुन्ना कुरैशी, राशिद, इरशाद, अंकुर, जतिन, नसीम, सौरभ, नसीर, वकील हसन और देवेन्द्र शामिल थे। मजदूरों तक सबसे पहले मुन्ना कुरैशी पहुंचा।

इस टोली में ज्यादातर मुस्लिम युवक शामिल थे। यह बात जोर देकर इसलिए याद दिलानी पड़ रही है कि सिलक्यारा सुरंग से कुछ ही किमी दूर उत्तरकाशी का पुरोला है, जहां कुछ महीने पहले मुस्लिम मुक्त उत्तरकाशी और मुस्लिम मुक्त उत्तराखंड की मुहिम चलाई गई थी और इस क्षेत्र में रह रहे मुसलमानों को रातों-रात इस इलाके को छोड़ना पड़ा था।

झण्डा लेकर सुरंग में जाता एक वव्यक्ति, यहाँ जमकर अंधविश्वास परोसा जा रहा है

सुरंग से बेशक सभी मजदूरों को बाहर निकाल लिया गया हो, लेकिन यह हादसा कई सवाल छोड़ गया है। पहला सवाल यह कि सुरंग में सुरक्षा के प्रबंध क्यों नहीं थे। जबकि इस तरह की सुरंग बनाने के दौरान एक ह्यूम पाइप लगाई जाती है, ताकि ऐसा हादसा हो तो वहां काम कर रहे लोग बाहर आ सकें। इसके अलावा इस तरह के निर्माणों से पहले जियोलॉजिकल और जियोटेक्निक जांच होती है, वह हुई या नहीं, हुई तो उस पर अमल क्यों नहीं किया गया। दूसरा सवाल यह कि उत्तराखंड जैसे आपदा वाले प्रदेश में आपद प्रबंधन तंत्र इतना ढीला क्यों है कि सुरंग के भीतर 60 मीटर मलबा हटाने में 17 दिन क्यों लगे। एक और सबसे बड़ा सवाल यह कि सुरंग बनाने वाली कंपनी पर अब तक मुकदमा दर्ज क्यों नहीं हुआ। मजदूरों को एक-एक लाख रुपये उत्तराखंड सरकार ने दिये, जब यह राशि कंपनी से दिलवाई जानी चाहिए थी। कंपनी किसकी है, यह भी एक बड़ा सवाल बना हुआ है। समाचारों में यह बात सामने आई थी कि नवयुग इंजीनिरिंग नाम की इस कंपनी को कुछ समय पहले अडानी ने खरीद लिया था। अडानी ग्रुप की ओर से इस पर कोई सफाई अब तक नहीं दी गई है।

 

बड़ी-बड़ी मशीनों और आस्ट्रेलियन एक्सपर्ट के फेल हो जाने के बाद रैट माइनर्स ने जब फंसे हुए मजदूरों को बाहर निकाल लिये तो फिर से नाटकबाजी शुरू की गई। समझा जाता है कि सुरंग से निकालने के कई घंटे बाद उनको निकाले जाने की घोषणा हुई। मुख्यमंत्री की मौजूदगी में जब उन्हें कैमरे पर लाया गया तो नहाये-धोए और नये कपड़े पहने हुए थे। सभी के चेहरे पर मुस्कान थी, कुछ तो मुख्यमंत्री और वहां मौजूद केन्द्रीय राज्य मंत्री वीके सिंह के पैर छूते भी नजर आये। बताया यह गया कि वे अभी-अभी सुरंग से निकलकर आये हैं। जानकारों को कहना है कि 17 दिन तक हुई किरकिरी से बचने और कोई सुरंगों पर सवाल न उठाये इसलिए इस तरह की नाटकबाजी की गई और एक जानलेवा लापरवाही का सामान्यीकरण करने का प्रयास किया गया।

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