सुरंग बनाने में मानकों की अनदेखी, एनएचआईडीसीएल जिम्मेदार

इंद्रेश मैखुरी

 

राज्य सचिव भा क पा (माले )

 

उत्तरकाशी का सुरंग हादसा कोई  पहला मौका नहीं है जबकि इस परियोजना निर्माता कंपनी की लापरवाही से लोगों का जीवन खतरे में पड़ा. 21 दिसंबर 2018 को रुद्रप्रयाग-गौरीकुंड राजमार्ग पर बांसवाड़ा के पास सड़क निर्माण के मलबे में दब कर सात मजदूरों की मौत हो गयी. उस समय भी परियोजना निर्माता कंपनी की लापरवाही सामने आई थी. मजदूरों के मलबे में दब कर मरने के मामले में उस समय रुद्रप्रयाग पुलिस ने माना था कि यह दुर्घटना निर्माण एजेंसी की लापरवाही का परिणाम है. पुलिस के अनुसार निर्माण एजेंसी द्वारा सुरक्षा मानकों को ताक पर रख कर काम करवाया जा रहा था.

जुलाई 2020 में नरेंद्रनगर के खेड़ा गांव में उक्त परियोजना निर्माण करने वाली कंपनी द्वारा महीने भर पहले बनाए गए पुश्ते के ढहने से एक घर दब गया और तीन बच्चों की मृत्यु हो गयी.
24 जुलाई 2021 को असिस्टेंट प्रोफेसर मनोज सुंदरियाल की कार पर,इस परियोजना के दौरान खोदी गयी एक चट्टान के गिरने के चलते साकणीधार के पास उनकी मृत्यु हो गयी. कितने वाहनों पर लापरवाही से खोदे गए पहाड़ों से चट्टानें गिरी और वे क्षतिग्रस्त हुए, इसका कोई हिसाब ही नहीं है.   इसलिए इस पूरी तबाही की ज़िम्मेदारी एनएचआईडीसीएल पर आयद की जानी चाहिए.
सीपीआई एम एल का  बयान
उत्तरकाशी- ब्रह्मखाल- यमुनोत्री राजमार्ग पर सिल्क्यारा सुरंग में फंसे 40 मजदूरों के रेसक्यू में हो रही देरी चिंताजनक है. हम सभी मजदूरों की कुशलता की कामना करते हैं.
प्रथम दृष्टया यह चार धाम सड़क परियोजना निर्माता कंपनी- एनएचआईडीसीएल द्वारा पहाड़ और मजदूरों की सुरक्षा से खिलवाड़ का मामला प्रतीत होता है. इस कंपनी के विरुद्ध मजदूरों का जीवन खतरे में डालने का मुकदमा दर्ज किया जाना चाहिए. 2021 में उच्चतम न्यायालय ने इस परियोजना को पर्यावरणीय खतरों को भांपने के बावजूद अनुमति देते हुए कहा था कि इस के निर्माण में सर्वश्रेष्ठ उपलब्ध तौर-तरीके अपनाए जाएँ पर उत्तरकाशी की घटना बता रही है कि ऐसा नहीं किया गया.
पूरे चार धाम परियोजना सड़क मार्ग को देख लें तो यह साफ दिखाई देता है कि परियोजना निर्माता कंपनी ने किस कदर लापरवाही के साथ काम करते हुए पहाड़ों को तहस-नहस कर डाला है.
यह पहला मौका नहीं है जबकि इस परियोजना निर्माता कंपनी की लापरवाही से लोगों का जीवन खतरे में पड़ा. जुलाई 2020 में नरेंद्रनगर के खेड़ा गांव में उक्त परियोजना निर्माण करने वाली कंपनी द्वारा महीने भर पहले बनाए गए पुश्ते के ढहने से एक घर दब गया और तीन बच्चों की मृत्यु हो गयी. 21 दिसंबर 2018 को रुद्रप्रयाग-गौरीकुंड राजमार्ग पर सड़क निर्माण के मलबे में दब कर सात मजदूरों की मौत हो गयी. उस समय भी परियोजना निर्माता कंपनी की लापरवाही सामने आई थी. 24 जुलाई 2021 को असिस्टेंट प्रोफेसर मनोज सुंदरियाल की कार पर,इस परियोजना के दौरान खोदी गयी एक चट्टान के गिरने के चलते साकणीधार के पास उनकी मृत्यु हो गयी. कितने वाहनों पर लापरवाही से खोदे गए पहाड़ों से चट्टानें गिरी और वे क्षतिग्रस्त हुए, इसका कोई हिसाब ही नहीं है.  इसलिए इस पूरी तबाही की ज़िम्मेदारी एनएचआईडीसीएल पर आयद की जानी चाहिए.
भारत सरकार का सड़क एवं राजमार्ग मंत्रालय भी इस दुर्घटना के लिए जिम्मेदार है क्यूंकि इस मंत्रालय ने बिना पर्यावरणीय प्रभाव आकलन करवाए ही इस परियोजना को बनाने का काम शुरू कर दिया. इसके लिए 889 किलोमीटर की परियोजना को सौ किलोमीटर से कम के 53 पैकेजों में बांट दिया गया. भारत सरकार के सड़क और राजमार्ग मंत्रालय को बताना चाहिए कि आखिर किसके लाभ के लिए इस परियोजना को पर्यावरणीय प्रभाव आकलन करवाए बिना बनने की अनुमति दी गयी.
इस पूरे प्रकरण में आपदा प्रबंधन तंत्र की कमजोरी भी एक बार फिर प्रदर्शित हुई. आपदा आने से पहले आपदा प्रबंधन तंत्र कागजों पर बहुत मजबूत नज़र आता है. लेकिन जैसे ही आपदा के हालात पैदा होते हैं, वह किंकर्तव्यविमूढ़ हो कर केवल धूल में लट्ठ चलता नज़र आता है. वास्तविक आपदा की स्थितियों में आपदा प्रबंधन तंत्र केवल हैडलाइन का प्रबंधन करने के ही काम आता है.
अपने मजदूर साथियों के चौथे दिन भी रेसक्यू ना हो पाने पर आज सुरंग की साइट पर प्रदर्शन करने वाले मजदूरों के जज्बे को सलाम करते हैं और उनकी वाजिब मांगों का समर्थन करते हैं.
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