हिमालय क्षेत्र में बंद हो सुरंग निर्माण

(सामाजिक कार्यकर्ता नागेंद्र दत्त के साथ सुरेश भाई )

 

ध्य हिमालय में स्थित उत्तरकाशी जनपद में आल वेदर रोड के नाम पर निर्माणाधीन सिल्क्यारा टनल में पिछले 15 दिनों से फंसे हुए 40 से अधिक मजदूरों को नहीं निकाला जा सका है जबकि राज्य और केंद्र सरकार के अनेकों तकनीकि संस्थान और विदेशी जानकारों की मेहनत रात- दिन लगी हुई है। जिस मशीन को भी काम पर लगा रहे हैं वही टूट रही है।

उत्तरकाशी के जिलाधिकारी अभिषेक रुहेला एक हेल्प डेस्क के रूप में पूरे जिले का कार्यालय बनाकर फाइलों को भी वहीं पर निपटा रहे हैं। कब जिंदगियों को सकुशल सुरंग से बाहर निकाला जायेगा, यह आस लगाए सैकड़ो लोग खड़े हैं। सिल्क्यारा टनल के सामने दर्जनों इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के लोग अपने कैमरों के साथ खड़े हैं। उनमें से 80% से अधिक तो स्वयं ही सुरंग में फंसे मजदूरों के बारे में वर्णन करते जा रहे हैं। लेकिन वहां बड़ी संख्या में मौजूद स्थानीय लोग क्या कहना चाहते हैं।उस तरफ ध्यान ही नहीं है।

जिस राड़ी पर्वत की तलहटी में यह सुरंग खोदी जा रही है। वहां दिनों दिन इतनी संवेदनशीलता बढ़ती जा रही है कि इसके निर्माण के बाद भी क्या वह सुरक्षा प्रदान कर सकेगी? क्योंकि सुरंग के अंदर पड़े मलवे को बाहर निकलने में निर्माण कंपनी और अन्य बचाव कार्य में लगे हुए टेक्नीशियन अभी तक कामयाबी हासिल तो नहीं कर पाए। जिसके बाद अब वर्टिकल ड्रिलिंग हो रहा है। यानी पहाड़ के ऊपर से छेद करके सुरंग के अंदर फंसे हुए मजदूरों तक पहुंचने का प्रयास कितना सफल होगा। इस बारे में वहां उपस्थित पत्रकारों को बताया जा रहा है कि तीन-चार दिन और लग सकते हैं। हमने एबीपी और अन्य इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के पत्रकारों से पूछा कि क्या आप जानते है कि सुरंग के मुहाने से लगभग 130 मीटर अंदर जहां पर मलवा गिरा है वहां की स्थिति क्या है। उनका जवाब था कि वहां तक हम गए ही नहीं है।
लेकिन वहां पर रात दिन बचाव कार्य को जिम्मेदारी पूर्वक देख रही केंद्रीय अनुसूचित जाति और जनजाति आयोग की पूर्व सदस्य डा० स्वराज विद्वान ने हमें एक फोटो दिखाई। जिसमें टनल के अंदर पूरी तरह मलवा भरा हुआ है।कुछ लोगों ने बताया कि सुरंग के मुहाने के बांयी तरफ निर्माण कंपनी ने एक छोटा सा मंदिर हटाकर समतल करने का जैसे ही प्रयास किया है उसके बाद ही टनल के अंदर मलवा गिरा है।डा० स्वराज विद्वान भाजपा की राष्ट्रीय महासचिव है जिसने इस घटना के बाद अपने घर पर दीपावली भी नहीं मनायी है। वह 12 नवंबर से हर दिन सुबह से ही देर रात तक बचाव कार्य को देखती रही है। रोज मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री कार्यालय तक सूचना भी भेजती है। लेकिन सच्चाई यह भी है कि इस सुरंग निर्माण में अनेकों बार भूस्खलन होता रहा है। इसकी बात तभी से सामने आई है, जबसे मजदूर वहां फंसे हैं।

“राडी पर्वत” पर घनी बर्फ पड़ती रहती है। ऊपर इसके आसपास जल स्रोत भी बरसात में बढ़ जाते हैं।
सुरंग निर्माण में यदि ब्लास्टिंग का इस्तेमाल अधिक हुआ होगा तो निश्चित ही भविष्य के लिए और अधिक खतरा बन सकता है। कुछ लोगों ने हमें बताया कि तीन-चार दिन पहले जब भूकंप आया था तो टनल के अंदर भी दरारें पड़ी है। उत्तरकाशी का यह क्षेत्र भूकंप के लिए अति संवेदनशील है।इसके नीचे से एक फॉल्ट लाइन गुजर रही है जिसके ऊपर इस सुरंग का निर्माण हो रहा है। इसको जितना नजरअंदाज करोगे समस्याएं और बढ़ती जाएगी। भले ही मजदूर जिस रूप में भी बाहर निकलेंगे वह तो भविष्य ही बताएगा।
अतः हिमालय सुरंगों से खतरे में पड़ रहा है। यही मौका है जब सुरंग बनाने का विचार राज्य और केंद्र सरकार को मध्य हिमालय में त्याग देना चाहिए।

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