देहरादून में कारपोरेट के खिलाफ किसान-मजदूर महापड़ाव

देहरादून किसान मजदूर  महापड़ाव के पहला दिन संविधान दिवस के रूप में मनाया गया। इस मौके पर संविधान की प्रस्तावना की शपथ ली गई और संविधान की मूल भावना के साथ छेड़छाड़ करने के प्रयासों का पुरजोर विरोध किया गया। इस मौके पर उत्तरकाशी की सिलक्यारा टनल में 15 दिन से फंसे 41 मजदूरों के रेस्क्यू ऑपरेशन में की जा रही हीला-हवाली के विरोध में एक प्रस्ताव पारित किया गया। प्रस्ताव में सरकार से 41 मजदूरों को जल्द से जल्द सुरंग से बाहर निकालने और उत्तराखंड में बन रही सभी सुरंग आधारित परियोजनाओं की समीक्षा करने और उन्हें बंद करने की मांग की गई।

केन्द्रीय ट्रेड यूनियनों और संयुक्त किसान मोर्चा के राष्ट्रीय आह्वान पर आज 26 नवंबर 2023 से रदेहरादून के दीनदयाल पार्क में तीन दिवसीय महापड़ाव की शुरुआत हुई। पूर्व कैबिनेट मन्त्री इंटक के अध्यक्ष हीरासिंह बिष्ट ने संविधान की रक्षा की शपथ दिलाई। सिलक्यारा मजदूरों को सुरक्षित बाहर निकालने तथा राज्य की सभी परियोजनाओं की समीक्षा की मांग का प्रस्ताव जनपक्षीय पत्रकार त्रिलोचन भट्ट ने रखा जिसे एक स्वर से पारित किया गया। महापड़ाव के पहले दिन की अध्यक्षता सीटू के प्रांतीय सचिव से राजेन्द्र सिंह नेगी, इ्ंटक के हीरा सिंह बिष्ट, एटक के अशोक शर्मा, समर भंडारी, किसान सभा के सुरेन्द्र सिंह सजवाण, एक्टू के केके बौरा, किसान एकता केंद्र के तेजेन्द्र किसान एकता केन्द्र आदि ने की।

महापडाव में सामील होने के लिए राज्य के कई हिस्सों से महिलायें भी आई हुई हैं।

महापड़ाव का मु्ख्य मकसदः
महापड़ाव में वक्ताओं ने कहा कि 2014 से केन्द्र की मोदी सरकार द्वारा लगातार जनविरोधी कानून बनाये जा रहे हैं। उद्योग, कृषि, शिक्षा, स्वास्थ, रोजगार, सार्वजनिक प्रतिष्ठानों पर हमले ने हमारे मूलभूत ढांचे की बुनियादी परिवर्तन कर कारपोरेट के लिये रास्ता खोल दिया है। अनियोजित विकास के चलते सड़क और बिजली परियोजनाओ और अन्य बड़ी योजनाओं ने राज्य के पर्यावरणीय तथा जलवायु को भारी क्षति पहुंचाई है। 2013 केदारनाथ त्रासदी, 2020 रामगढ़ त्रासदी, 2021 जोशीमठ ऋषिगंगा त्रासदी और अब सिल्कयारा टनल ढहने जैसे दुर्घटनाओं ने राज्य को बुरी तरह झकझोर दिया है।

वक्ताओं का यह भी कहना था कि राज्य में गरीबों खासकर अल्पसंख्यक समुदाय को अतिक्रमण के नाम पर बेदखल करना आम बात है। स्मार्ट सिटी एवं लोकलुभावन नीतियां आम जनता के काम नहीं आ रही हैं। सरकार का प्रस्तावित इन्वेस्टर समिट अन्ततः कारपोरेट तथा अन्तर्राष्ट्रीय पूंजी घरानों को मदद पहुंचायेगा। राज्य का देश की सुरक्षा में महत्वपूर्ण योगदान रहा है। हरेक घर में सेना में जाने की परम्परा रही, किन्तु सेना का भी नीजिकरण कर स्थाई रोजगार छीनने का कार्य करना निन्दनीय है। महापड़ाव के पहले दिन शाम के सत्र में नवांकुर की टीम ने नाटक का मंचन भी किया। देर रात तक गीत और जनगीतों से पड़ावस्थल गुंजायमान रहा।

मजदूर-किसानों की मुख्य मांगें
– चार श्रम कोड वापस लेने, ठेका प्रथा बन्द करने, असंगठित क्षेत्र में सामाजिक सुरक्षा की गारन्टी।
– खाद्य सुरक्षा की गारन्टी, पेट्रोलियम पदार्थों, रसोई गैस मूल्यवृद्धि वापस हो।
– सार्वजनिक वितरण प्रणाली मजबूत हो और इसका दायरा बढ़े।
– गन्ने का मूल्य 500 रूपये प्रति क्विंटल हो।
-जंगली जानवरों से फसलों एवं जानमाल की सुरक्षा के साथ मुआवजे की गारन्टी हो।
– प्रस्तावित बिजली बिल वापस हों और प्री पेड स्मार्ट मीटर वापस हों।
– काम के अधिकार कौ मौलिक अधिकार घोषित किया जाए।
– किसानों की कर्ज माफ किये जाएं।
– संविधान के बुनियादी ढा़चे पर हमला बन्द किया जाए।

महापड़ाव के दौरान नाटक का मंचन

– कारपोरेट परस्त बीमा योजना समाप्त करते हुए फसलों के लिये सार्वजनिक क्षेत्र की बीमा योजना स्थापित हो।
– वनाधिकार अधिनियम कड़ा़ई लागू किया जाए।
– राष्ट्रीय न्यूनतम वेतन 26 हजार रुपये लागू हो।
– सभी आवासहीन लोगों को आवास दिया जाए।
– नियमित रूप से श्रम सम्मेलन हों।
– सभी के लिये मुफ्त शिक्षा ,स्वास्थ ,पेयजल, स्वच्छता का अधिकार हो, नई शिक्षा नीति वापस लो।
– उपनल, संविदा व ठेका कर्मियों को माननीय हाई कोर्ट व माननीय सर्वाेच्च न्यायालय के आदेशानुसार समान काम का समान वेतन, भत्ते, सुविधाएं दी जाएं। व वर्षाे से कार्यरत इन श्रमिकों नियमित किया जाए।
– गढ़वाल मंडल विकास निगम को पी.पी.पी. मोड में देने पर रोक लगे।
– उत्तराखंड में केंद्रीय संस्थानों में कार्यरत संविदा व ठेका मजदूरों का शोषण पर रोक लगाई जाए।

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