रेस्क्यू में फोकस सिर्फ प्लान-एक पर ही क्यों है ?

त्रिलोचन भट्ट 

 

13 दिन से सुरंग में फंसे मजदूरों के रेस्क्यू के नाम पर अब तो लगता है मजाक किया जा रहा है। एक पूरा दिन सुरंग के पास बिताने में बाद मुझे यह बात तो अच्छी तरह से समझ आ गई थी कि मजदूरों को बचाने के बजाय सुरंग को बचाने पर ज्यादा फोकस था। लेकिन जब लगा कि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मीडिया में इस सुरंग का मसला चर्चा का विषय बन गया है। सूचना अधिकारी के लगातार झूठी और मनगढं़त खबरे प्लांट करवाने के बाद भी सच्चाई दुनिया के सामने पहुंच रही है तो रेस्क्यू अभियान में गंभीरता आइई। लेकिन सुरंग को नुकसान पहुंचाये बिना मजदूरों को निकालना संभव नहीं था। इसके लिए आस्ट्रेलिया से एक वैज्ञानिक अर्नाल्ड डिक्स को बुलाया गया।

झण्डा लेकर सुरंग में जाता एक वव्यक्ति, यहाँ जमकर अंधविश्वास परोसा जा रहा है

एक सवाल तो यह कि क्या हमारे पास एक ऐसा वैज्ञानिक नहीं जो इस रेस्क्यू ऑपरेशन पर सलाह दे सकता। लेकिन, यहां दिखाना था कि देखो हम कितने गंभीर हैं कि ऑस्ट्रेलिया से वैज्ञानिक बुलाया है। वरना देश में अर्नाल्ट डिक्स से कम योग्य वैज्ञानिक नहीं हैं। सबसे पहले अर्नाल्ड डिक्स को सुरंग के सामने बनाये गये अस्थाई मंदिर के सामने बिठाया गया। फिर खबरें छपवाई गई कि सुरंग के पास बौखानाग देवता का मंदिर तोड़े जाने के बाद यह हादसा हुआ। अपने एजेंडे को मजबूती से स्थापित करने के लिए मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी टूटी मेज के ऊपर स्थापित किये गये उस मंदिर के पास हाथ जोड़ने पहुंचे। ढोल नगाड़ों के साथ एक देव डोली भी मेज पर बने मंदिर और सुरंग के पास लाई गई। फिर खबरें प्लांट की गई और देवडोली से कहलवाया गया कि कल सब बाहर निकलो।

22 नवंबर की शाम को प्रचार प्रसार कर दिया गया कि 800 मिमी के पाइप मजदूरों तक पहुंच गये हैं। मुख्यमंत्री उत्तरकाशी पहुंच गये, ताकि आपदा को अवसर बनाया जा सके। बाहर आये मजदूरों के साथ फोटो खिंचवाकर वाहवाही लूटी जा सके। लेकिन 22 की रात को मामला फंस गया। मशीन में खराबी आ गई या मशीन के सामने लोहे का कोई गार्टर आ गया। मजदूरों को बाहर नहीं निकाला जा सका। 23 की सुबह मुख्यमंत्री भी पहुंच गये और केन्द्रीय सड़क परिवहन राज्यमंत्री वीके सिंह भी। लेकिन, मजदूर नहीं निकाले जा सके। प्लान फेल हो जाने के बाद मुख्यमंत्री ने घोषणा कर दी कि जब तक मजदूर नहीं निकलते वे वहीं रहेंगे और मातली में मुख्यमंत्री का कैंप ऑफिर रहेगा। यानी खिसियानी बिल्ली, खम्मा नोचने वाली बात हुई।

कहां गये बाकी 4 प्लान
अनॉल्ड डिक्स ने रेस्क्यू के 4 प्लान बनाये थे। पहला प्लान वही था जिस पर काम हो रहा था। यानी सुरंग में आये मलबे में हॉरिजेंटल ड्रिलिंग करके बड़े पाइप अंदर पहुंचाना। यह काम मशीन में खराबी के कारण रुक गया था। बाद में शुरू हुआ फिर रुक गया। एक बात समझ नहीं आई। जब प्लान एक बार-बार फेल हो रहा है तो प्लान दो शुरू क्यों नहीं किया जा रहा है? प्लान दो के तहत सुरंग को ऊपर से ड्रिल किया जाना है। वर्टिकल ड्रिलिंग मशीन को सुरंग के ऊपर पहुंचाने के लिए अप्रोच लाइन 3 दिन पहले ही बन गई थी।

ये फ़ोटो ऋषिकेस-गंगोत्री रोड पर 23 नवंबर की शाम अरण्य रंजन समून ने खींचा, यदि ये वही मशीन है तो इसका मतलब है 36 घंटे में सिर्फ 60 किलोमीटर ले जाई गई है

कहा गया था कि मशीन जौलीग्रांट एयरपोर्ट पहुंच गई है। अब वह मशीन कहां है, इस बारे में भी कोई जानकारी क्यों नहीं दी जा रही है? 23 नवंबर की शाम को ऋषिकेश-गंगोत्री हाईवे पर खाड़ी नाम जगह से अरण्य रंजन समून ने वहां से ले जाई जा रही एक बड़ी मशीन को फोटा साझा किया। मशीन के आगे पुलिस की गाड़ी साइरन बजाती चल रही थी। उनका अनुमान है कि यह वही मशीन है तो फिर 21 नंवर की सुबह से 23 नवंबर की शाम तक क्या मशीन सिर्फ 60 किमी ही ले जाई जा सकी है। इससे साफ है कि वर्टिकल ड्रिलिंग वाले प्लान को बाइपास करने का प्रयास किया जा रहा है। दरअसल वर्टिकल ड्रिलिंग से सुरंग को नुकसान पहुंचेगा। क्या इस नुकसान से बचने के लिए ही प्लान दो को ठंडे बस्ते में डाल दिया गया है? यह बड़ा सवाल है… और जब पांच मोर्चों पर काम किये जाने का दावा किया जा रहा था तो फोकस सिर्फ एक ही मोर्चे पर क्यों है??

इस मामले पर वरिष्ठ पत्रकार रमेश पहाड़ी कहते हैं, हमारे आपदा प्रबंधन तंत्र की आपदापूर्व तैयारियों की तो हमेशा आलोचना होती ही है लेकिन आपदोत्तर तैयारियों में भी हम कितने कमजोर सिद्ध होते हैं, यह आपदा इसका नया नमूना है। बिना पुख्ता सुरक्षा-व्यवस्था के मजदूरों को अंधेरी सुरंग में काम करने को भेजना, उनके नाम, पते, संख्या तक की जानकारी मौके पर न होने और उजालों के 12 दिन बाद भी उनकी सुरक्षित निकासी न होने की दुःखद स्थिति के लिए आपदा प्रबंधन तंत्र और ठेकेदार कम्पनियां ही तो जिम्मेदार हैं।

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