चुनाव में अव्यवस्था: जिम्मेदार कौन

त्रिलोचन भट्ट

2025 का उत्तराखंड नगर निकाय चुनाव कई मामलों में अद्भुत रहा। बड़ी संख्या में वोटर्स के नाम लिस्ट से गायब थे, बेहद धीमी गति से मतदान प्रक्रिया चली, बीजेपी नेताओं का जबरन मतदान केन्द्रों में घुसने का प्रयास किया और सरकारी गाड़ियों में खाली मतपेटियां मिली। लंबी लाइन लगने के कारण कुछ जगहों पर पुलिस ने लाठीचार्ज भी किया। से सब क्यों हुआ? कहीं न कहीं तो कुछ गड़बड़ है। इस सबको सिर्फ लापरवाही और कुप्रबंधन मानकर नजरअंदाज किया जाए? या यह मान लिया जाए कि जानबूझकर साजिशन ऐसा किया गया, चुनाव जीतने के लिए। और साजिशन किया गया तो वह साजिश किस स्तर से हुई? यह भी पूछा जाना चाहिए कि जिन लोगों के नाम वोटर लिस्ट से हटाये गये, उनके लोकतांत्रिक अधिकारों के हनन की भरपाई कैसे होगी? और अब राज्य निर्वाचन आयोग को क्या करना चाहिए?

उत्तराखंड के एक सौ नगर निकायों के लिए मतदान हो गया। सवाल ये है कि इतनी अनियमिताओं के बाद जो नतीजे आने वाले हैं, क्या वे सही नतीजे होंगे? बात वोटर लिस्ट से शुरू करते हैं। क्या हर नगर निकाय में सैकड़ों से लेकर हजारों मतदाताओं तक के नाम कट जाने से चुनाव नतीजे प्रभावित नहीं होंगे? होंगे न? और जिन लोगों के लोकतांत्रिक अधिकारों का हनन हुआ, उन्हें मताधिकार से ही वंचित कर दिया गया, उसका क्या?

इससे भी अफसोसजनक बात तो यह कि कुछ लोग इसके लिए भी मतदाताओं को ही जिम्मेदार ठहरा रहे कि यह कहकर कि उन्होंने अपना नाम लिस्ट में देखा क्यों नहीं? मतलब जो लोग वोटर लिस्ट बना रहे थे, सरकारी खर्चे पर, उनको जिम्मेदारी से पूरी तरह से मुक्त करने का प्रयास हो रहा है। पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत का उदाहरण ले लेते हैं। झोल आपको समझ आ जाएगा।

हरीश रावत के अनुसार वे 2009 से लगातार माजरा में वोट करते रहे हैं। इस बार गये तो नाम नहीं था। चुनाव आयोग को शिकायत की। मतदान खत्म होने के बाद डीएम की तरफ से बताया गया कि उनका नाम डिफेंस कॉलोनी में है। जबकि खुद हरीश रावत का कहना है कि उन्होंने इसके लिए कभी अप्लाय किया ही नहीं था।

हरीश रावत जी ने एक पोस्ट करके मान लिया है कि जब राजनीतिक पिछवाड़े में वोटों के डकैत आ गये हों तो अपने वोट की रक्षा करने के लिए उन्हें जागरूक रहना चाहिए। इस सलाह के लिए उन्होंने बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष महेन्द्र भट्ट को थैंक्यू भी बोल दिया है। और नाम ढूंढने के लिए देहरादून के डीएम को भी धन्यवाद कहा है। हालांकि उनका नाम प्रशासन तक ढूंढ पाया, जब मतदान का वक्त खत्म हो गया था। लिहाजा हरीश रावत वोट नहीं डाल पाये। एक सवाल यह भी हरीश रावत ने उठाया कि वे हमेशा हरीश रावत के नाम से ही वोट डालते हैं। इस बार उनका नाम हरीश चंद्र रावत कैसे और क्यों हुआ?

हरीश रावत जी के पास संसाधन हैं और स्टाफ भी है वे अगली बार से अपने वोट की रक्षा कर लेंगे। लेकिन, आम लोगों के पास क्या इतने संसाधन, इतनी जानकारी और इतना समय है? अपना नाम चेक करने की सलाह देने वालों के पास है इस सवाल का जवाब? ये जो हम हर रोज सुबह से शाम तक टैक्स देते रहते हैं न भाई साहब सरकार को, इसमें सरकार का काम हमारे वोट की रक्षा करना भी है। यह बात हम सबको जान लेनी चाहिए। कांग्रेस ने नाम काटे जाने पर कड़ी प्रतिक्रिया जताई और कहा कि इससे सरकार के प्रति लोगों का विश्वास खत्म हुआ है।

मजेदार बात यह है कि बीजेपी के प्रदेश मीडिया प्रभारी खुद कह रहे हैं कि बड़कोट में निर्दलीय विधायक ने वोटर लिस्ट में गड़बड़ी की। यदि बीजेपी नेता की यह बात सच है तो बीजेपी सरकार को मान लेना चाहिए कि ऐसा हुआ है और यह भी बताना चाहिए कि किसके कहने पर कहां वोटर लिस्ट में गड़बड़ी की गई?

बीजेपी नेताओं के जबरन मतदान केन्द्रों पर घुसने के मामले सामने आये। ऊपर जिन बीजेपी प्रवक्ता का बयान आपने सुना वे खुद बड़कोट में एक मतदान केन्द्र में घुसने का प्रयास करते पकड़े गये। लोगों ने उनका जमकर विरोध किया। देहरादून के एक एक मतदान केन्द्र पर खुद राज्य के एक मंत्री उमेश शर्मा काऊ घुसने का प्रयास कर रहे थे। यहां एक निर्दलीय उम्मीदवार और उनके समर्थकों ने विरोध किया तो मंत्री जी धमकाने पर उतर आये।

बैलेट पेपर से वोट डालने में कुछ देरी तो होती है ईवीएम की तुलना में, लेकिन उतनी भी नहीं, जितनी कल देखी गई। ज्यादातर वोटर्स को लंबी लाइन में लगकर अपनी बारी का इंतजार करना पड़ा। कई जगहों पर तो शाम 5 बजे बाद भी लंबी लाइन थी। रुड़की और मंगलौर में इस धीमी गति का लोगों ने ऐतराज जताया तो पुलिस ने लाठियां चला दी।

इन चुनावों में ऋषिकेश की मेयर सीट हॉट सीट बन गई थी। बेशक इसके कारण कुछ भी रहें हों, लेकिन इस सीट पर गड़बड़ी की खूब कोशिशें हुई। यहां तक शिकायत मिली कि मतदान खत्म होने के बाद कुछ लोग खाली मतपेटियां ले जा रहे थे। यह एक गंभीर आरोप है। इसकी जांच की जानी है और असलियत क्या है, लोगों को बताया जाना चाहिए।

कब तक चलेगा ये?
अब आगे क्या? क्या इसी तरह चलता रहेगा? इसके बाद त्रिस्तरीय पंचायत चुनावों में और फिर 2027 के विधानसभा चुनावों में भी? ऐसा न चले इसके लिए जरूरी है कि हम सब मिलकर आवाज उठायें। अच्छा तो यह होता कि लोकतंत्रिक मर्यादाओं और संवैधानिक मूल्यों पर एक के बाद एक प्रहार कर रही सत्ताधारी पार्टी के खिलाफ सब एकजुट होकर लड़ते। सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी होने के नाते कांग्रेस का यह फर्ज था कि वह सभी विपक्षी दलों के साथ ही सामाजिक संगठनों को भी एकजुट करती। लेकिन, कांग्रेस के अपने ही झगड़े नहीं सुलझते। यदि ऐसी कोई मंशा कांग्रेस की होती तो वह निकाय चुनावों में कुछ सीटें इंडिया गठबंधन में शामिल पार्टियों के लिए जरूर छोड़ती।

फिलहाल सामाजिक कार्यकर्ता अनूप नौटियाल ने इन अनियमितताओं को लेकर एक प्रेस नोट जारी किया है। उन्होंने राज्य निर्वाचन आयोग के सामने तीन मांगे रखी हैं। पहली यह कि बहुत धीमी गति से मतदान कराये जाने की कारणों की जांच करे और दो हफ्ते में रिपोर्ट जारी करे। दूसरी यह कि एक महीने में यह बताये कि इन चुनावों में कितने मतदाता हैं, जिनके नाम लिस्ट में नहीं थे। साथ ही उन्होंने एक महीने के दौरान हर नगर निकाय में राजनीतिक दलों के प्रतिनिधियों, निर्वाचन आयोग के अधिकारियों, चुनावों में सक्रिय सामाजिक संगठनों और मीडिया के साथ बैठकें करके मतदान के दौरान हुई अनियमितताओं पर चर्चा करने और विस्तृत रिपोर्ट जारी करने की मांग की है। मुझे लगता है कि ये मांगें हम सबकी मांगें हैं और हम सबको ऐसा करने के लिए सरकार पर दबाव बनाना चाहिए।

Leave A Reply

Your email address will not be published.