चारु तिवारी
(पत्रकार एवं सोशल एक्टिविस्ट)
उत्तराखंड में पिछले एक दशक से में ‘पढ़ने-लिखने की संस्कृति’ को लेकर कई स्तरों पर प्रयास हुये हैं। उत्तराखंड के जागरूक शिक्षकों से लेकर सामाजिक कार्यकर्ताओं ने कई ऐसे प्रयोग किये हैं, जो सामाजिक, सांस्कृतिक और शैक्षिक रूप से नई पीढ़ी को चेतन करने में भूमिका निभा रही हैं। इन लोगों ने स्कूलों में बच्चों के लिए दीवार पत्रिका, गांवों में पुस्तकालय और नये संचार माध्यमों से अपनी भाषा और संस्कृति के लिये भी काम किया है। इनमें से एक संगठन है ‘क्रिएटिव उत्तराखंड-म्यर पहाड़’ इसने पिछले डेढ-दो वर्षो से उत्तराखंड के विभिन्न जगहों पर ‘किताब कौतिक’ नाम से एक नई पहल की है। पहला ‘किताब कौतिक’ 24-25 दिसंबर, 2022 को किया गया था। यह दिन भी इसलिए चुना गया था कि उस दिन हमारे पहाड़ के दो महापुरुषों इंद्रमणि बडोनी और वीर चन्द्रसिंह गढ़वाली की जयंती होती है। उसके बाद बैजनाथ, चंपावत, पिथौरागढ़, द्वाराहाट, नानकमत्ता, भीमताल, हल्द्वानी, रानीखेत, पंतनगर, द्वाराहाट (दुबारा) और नई टिहरी में यह आयोजन हो चुके हैं। इनमें लोगों ने बड़ी रुचि ली और इसे सराहा। देश में भी इस प्रयास की बहुत चर्चा हुई।

‘किताब कौतिक’ में बहुत सारे प्रकाशकों की पुस्तकें आती हैं। लगभग एक लाख के लगभग किताबें इसमें प्रदर्शित की जाती हैं। साहित्य, संगीत, कला, पत्रकारिकता, रंगमंच, सिनेमा, विज्ञान, धर्म, अध्यात्म, प्रतियोगी परीक्षायें, पत्र-पत्रिकाओं से लेकर विश्व साहित्य तक। दो या तीन दिवसीय इस आयोजन में पुस्तकों के अलावा पुस्तकों के लोकार्पण और लेखकों से बातचीत भी होती है। अलग-अलग सत्रों में विभिन्न विषयों पर विषय विशेषज्ञ अपनी बात रखते हैं। इसमें लोक साहित्य, लोकभाषा, संस्कृति, पर्यावरण आदि पर बातचीत होती है। जिस जगह पर इसे किया जाता है वहां के इतिहास को जानने के लिए ‘स्थानीय इतिहास’ पर भी एक सत्र होता है। हर शाम लोक संस्कृति के साथ यह आयोजन समाप्त होता है। इस आयोजन के एक दिन प्रातः ‘नेचर वाॅक’ का कार्यक्रम होता है। इसमें स्थानीय बच्चों और नागरिकों को लेकर पास के जंगल में जाते हैं। इसमें एक पक्षी विशेषज्ञ राजेश भट्ट ‘बर्डर’ जो एक तरह से पक्षियों से बात करते हैं। लगभग दो सौ पक्षियों की आवाजें निकालते हैं। वह पक्षियों के जीवन पर बहुत रोचक तरीके से बच्चों को बताते हैं। दूसरे डाॅ. बीएस कडकोटी जो वनस्पति विज्ञानी हैं, वे रास्ते में पड़ने वाली सभी वनस्पतियों से परिचय कराते हैं। कौतिक में लोक कलाओं से लेकर चित्रकला, पेंटिंग और खगोल विज्ञान पर बहुत रोचकता से बच्चों को स्पेस की जानकारी दी जाती है। बच्चों के लिए उदय किरौला जी के मार्गदर्शन पर एक सप्ताह की लेखन कार्यशाला लगाई जाती है। बच्चे इन सात दिनों में अपनी लिखी एक-एक किताब भी तैयार करते हैं। इस कौतिक में गढ़रत्न नरेन्द्र सिंह नेगी, डाॅ शेखर पाठक, डाॅ यशोधर मठपाल, हेमंत पांडे, डाॅ. माधुरी बड्थ्वाल, पदमश्री बसंती बिष्ट, पंकज बिष्ट जैसे नामचीन हस्तियां शामिल होती हैं। नामों की बड़ी लिस्ट है यहां नाम सिर्फ संकेत के लिए नाम दिये जा रहे हैं।
इस संक्षिप्त विवरण से आप समझ गये होंगे कि यह ‘किताबों का कौतिक’ किस तरह का होता होगा। लेकिन अभी बात यह है कि इस बार बहुत तैयारी के साथ यह आयोजन ‘श्रीनगर किताब कौतिक’ के नाम से 15-16 फरवरी, 2025 को गढ़वाल की सांस्कृतिक और शैक्षिक नगरी श्रीनगर में होने जा रहा था। आयोजक हेम पंत, दयाल पांडे और रिस्की पाठक के साथ श्रीनगर के साथियों में बहुत उत्साह था। श्रीनगर में ‘राष्ट्रभक्त’, ‘संस्कारी’ ‘विश्वगुरु’ का प्रमाण पत्र टांगकर घूमने वाले आरएसएस और ‘अखिल भारतीय विद्यार्थीं परिषद’ ने बहुत शातिराना तरीके से सत्ता की हनक में इस आयोजन को न केवल रद्द करवाया, बल्कि गढ़रत्न नरेंद्र सिंह नेगी के श्रीनगर आने को भी गलत माना। इन्होंने इतनी निर्लज्जता के साथ ‘किताब कौतिक’ के पोस्टर के ऊपर अपने पोस्टर ‘विद्यार्थी एकत्रीकरण’ भी लगा दिये। इन पोस्टर में लिखा गया है कि जो भी ‘राष्ट्रभक्त’ छात्र हों वे इसमें शामिल हों। देश में नफरत की दुकान चलाने वालों का यह भी एक रूप है।

आरएसएस लंबे समय से इस ‘किताब कौतिक’ के पीछे हाथ धोकर पड़ी थी। पिथौरागढ़ में उन्होंने यह आरोप लगाया कि यह वामपंथियों का आयोजन है। आरएसएस के प्रदेश स्तर के पदाधिकारियों ने इस पर न केवल आपत्ति व्यक्त की, बल्कि यह भी कहा कि यहां आपत्तिजनक किताबें रखी गई है। उन्होंने कुछ किताबों के नाम भी बताये। उनमें से एक किताब है- ‘कौन है भारत माता।’ यह किताब प्रो. पुरुषोत्तम अग्रवाल की है। पहले यह अंग्रेजी में थी अब हिंदी में भी है। यह पुस्तक देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की पुस्तकों- ‘आत्मकथा’, ‘विश्व इतिहास की झलक’ और ‘भारत की खोज’ से चयनित अंश दिए गए हैं। उनके निबंध, भाषण, पत्र और साक्षात्कार भी इसमें शामिल हैं। पुस्तक में महात्मा गांधी, भगत सिंह, सरदार पटेल, मौलाना आजाद समेत देश-विदेश की अनेक दिग्गज हस्तियों के नेहरू के बारे में आलेख शामिल किए गए हैं। आपको इनके विवेक पर तरस आयेगा कि इन्होंने इस पुस्तक का नाम बताया- ‘भारत माता डायन है।’ दूसरी पुस्तक है- ‘सावरकरः एक विवादित विरासत’ यह पुस्तक विक्रम संपत की लिखी है और पेग्विन ने प्रकाशित की है। इन्होंने शायद ही यह पुस्तक देखी या पढ़ी हो, सिर्फ सावरकर का नाम देखकर ही उन्होंने मान लिया कि यह उनके खिलाफ लिखी किताब होगी। महत्वपूर्ण बात यह है कि विक्रम संपत को दक्षिणपंथी खेमे का ही माना जाता है। इन दो उदाहरणों से समझा जा सकता है कि आरएसएस और ‘अखिल विद्यार्थी परिषद’ कैसे लोगों के बीच झूठ परोसते हैं।
खैर, इनकी बात करूंगा तो बात लंबी हो जायेगी। फिलहाल जो श्रीनगर में हुआ वह असल में एक ‘किताब कौतिक’ के रद्द होने का नहीं है। यह अभिव्यक्ति और हमारी लोकतांत्रिक अधिकारों पर भी प्रहार है। दो बार आयोजन स्थलों की अनुमति मिलने के बाद भी किसी विचार विशेष का बताकर इस तरह के आयोजनों को रोकना कोई सामान्य बात नहीं है। पहले रामलीला मैदान को ‘किताब कौतिक’ को दिया जाना और फिर उसे किसी तथाकथित ‘विद्यार्थी एकत्रीकरण’ कार्यक्रम को दिया जाना घोर तानाशाही है। उल्लेखनीय है कि ‘क्रिएटिव उत्तराखंड-म्यर पहाड़’ 2004 से लगातार पहाड़ में शिक्षा, संस्कृति, भाषा पर काम कर रहा है। उत्तराखंड की हस्तियों के 130 पोस्टर भी प्रकाशित कर चुका है। ‘किताब कौतिक’ के रूप में इतने रचनात्मक काम को अगर सरकार चलाने वाली पार्टी भाजपा के सहयोगी संगठन ‘राष्ट्र विरोधी’ प्रचारित करते हैं तो इनकी ‘राष्ट्रभक्ति’ कौन सी है इस पर नये सिरे से सोचा जाना चाहिए।
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